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________________ [४] ज्ञाता-दृष्टा, ज्ञायक अविनाशी ही होते हैं । वे केवलज्ञान के बिना नहीं देखे जा सकते लेकिन वे छ: तत्व श्रद्धा में आ जाते हैं इसलिए फिर केवलज्ञान में आते ही हैं। पहले दर्शन में आते हैं, उसके बाद ज्ञान में आते हैं, फिर धीरे-धीरे वर्तन में आते हैं। ३८५ ज्ञाताभाव निकल गया इसलिए इस देह में से एक्सट्रेक्ट निकल गया। ‘मैं' ज्ञाताभाव था, वह ज्ञाताभाव निकल गया । इसलिए एक्सट्रेक्ट पूरा चला गया, फिर निर्जीव बाकी बचा। रियल, ज्ञेय या ज्ञाता ? प्रश्नकर्ता : मैं ज्ञाता और चंदूभाई ज्ञेय है, उसी प्रकार यहाँ पर बैठे हुए सभी महात्मा मेरे लिए ज्ञेय हैं। प्रश्न यह है कि उसमें मैं देखता हूँ 'रिलेटिव और रियल,' तो मेरे लिए दोनों, रिलेटिव और रियल ज्ञेय माने जाएँगे? जो रियल है वह भी ज्ञेय है ? रियल, रियल को देखे तो वह ज्ञेय कैसे हो सकता है? मुझे जो अनुभव हो रहा है, यह प्रश्न उसकी स्पष्टता के लिए है। सामनेवाले का जो रिलेटिव स्वरूप है, वह पूरा ज्ञेय है। अब खुद का रियल ज्ञाता है, तो उसी प्रकार दूसरे के रियल को ज्ञेय कहा जाएगा या ज्ञाता कहा जाएगा? दादाश्री : ज्ञाता कहा जाएगा। रियल ज्ञेय के रूप में नहीं होता । रियल ज्ञेय के रूप में कब हो सकता है? जो हमेशा के लिए रिलेटिव हैं, उनके लिए। जिनमें रियल और रिलेटिव का विभाजन नहीं हुआ है, उनके लिए 'रियल' ज्ञेय है। प्रश्नकर्ता : यानी महात्माओं में विभाजन हो गया है, इसलिए उन लोगों के लिए ज्ञेय नहीं है। I दादाश्री : क्रमिक मार्ग के ज्ञानी के लिए वह ज्ञेय कहलाता है । वे दूसरे आत्मा को ज्ञेय कहते हैं, फिर उनके भक्त तो कहेंगे ही। इसमें नया क्या है? तो फिर दूसरों के लिए झंझट ही मिट जाएगा न? क्योंकि उनके
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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