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________________ ३६८ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) दादाश्री : दृष्टापद तो रहेगा लेकिन फिर ज्ञाता पद में तो आता ही जा रहा है न दिनोंदिन। निरंतर पुरुषार्थ चल रहा है न! प्रश्नकर्ता : यानी आता ही रहेगा? दादाश्री : निरंतर पुरुषार्थ चल ही रहा है, पुरुष होने के बाद और इसीलिए ये पाँच आज्ञा दी हैं, पुरुषार्थ करने के लिए ही। निरंतर पुरुषार्थ जारी ही है। संयम के परिणाम ही आते रहते हैं। लोग भी देखते हैं कि अभी तो झगड़ा कर रहे थे न! मतभेद और बोला-चाली हो गई थी और वापस फिर से एक साथ बैठकर खा-पी रहे हैं। क्या हो गया है यह? वह है संयम परिणाम! सभी परिणाम झड़ जाते हैं ज्ञानी के ज्ञानीपुरुष जब खाँसते हैं, कैसे खाँसी आती है और उस पर हमें भी मज़ा आता है कि क्या बात है!' प्रश्नकर्ता : तो ये खाँसनेवाले ज्ञानीपुरुष कौन और मज़े करनेवाले 'हम' कौन हैं? दादाश्री : खाँसनेवाले ज्ञानीपुरुष, और मज़ा लेनेवाली प्रज्ञा। जो परिस्थिति के मालिक हैं, वे खाँसनेवाले हैं। परिस्थिति शब्द उपयोग करने योग्य है। प्रश्नकर्ता : लेकिन इसीलिए दादा ने कहा है न कि कुदरत में किसी को दंड नहीं है और किसी को लाभ भी नहीं है। उसे उसी का परिणाम देती है। दादाश्री : हाँ, परिणाम देती है। प्रश्नकर्ता : हम जो कल रात को अगर बाहर नहीं निकले होते तो यों खाँसनेवाले का मौका नहीं आता। वही परिणाम है? दादाश्री : तो यह परिणाम नहीं आया होता, फिर परिणाम नहीं आता तो ये परमाणु अंदर ही रह जाते इसलिए बाहर निकले वह ठीक ही है। यह
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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