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________________ [२.१४] द्रव्यकर्म + भावकर्म + नोकर्म ३३१ भरा हुआ माल, वह द्रव्यकर्म है और जब उसका उपयोग होता है, तब नोकर्म प्रश्नकर्ता : तो यह वाणी बोली जाती है, उसका समावेश किस में होता है? यह नोकर्म में आता है? दादाश्री : वाणी दो प्रकार से हैं, उसके मूल परमाणु द्रव्यकर्म के है और यह यहाँ से जो बाहर खिंचकर जिस रूप में वाणी निकली, वह नोकर्म है। प्रश्नकर्ता : अतः यह जब कोडवर्ड में होता है और उसमें से शॉर्ट हेन्ड होता है तब तक.... दादाश्री : वह सब द्रव्यकर्म में और यह जो निकलती है, वह नोकर्म। प्रश्नकर्ता : मुँह में से जो वाणी निकले, वह सारी नोकर्म? दादाश्री : नोकर्म अर्थात् आप मालिक नहीं हो, इसलिए आप ज़िम्मेदार नहीं हो। मालिक बनो तो ज़िम्मेदार हो। प्रश्नकर्ता : और मन में विचार आ रहें हो, तो वे किस में आएंगे। दादाश्री : वे सब नोकर्म। प्रश्नकर्ता : और मन में जो गाँठे पड़ी हुई होती हैं, ग्रंथियाँ अंदर, वे द्रव्यकर्म में जाते हैं? दादाश्री : वे द्रव्यकर्म में। प्रश्नकर्ता : चित्त, बुद्धि और अहंकार? दादाश्री : वे सब द्रव्यकर्म में लेकिन जैसे ही उपयोग होने लगा तो नोकर्म बन गया। प्रश्नकर्ता : जब अंदर सूक्ष्मरूप में पड़ा हुआ है, तब द्रव्यकर्म है और उपयोग होने लगा तब नोकर्म है।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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