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________________ ३३० आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) न तब। अगर उनसे तुम पूछो, 'कौन बोल रहा है?' तो कहेगा, 'मैं ही बोल रहा हूँ न!' प्रश्नकर्ता : और जिन्होंने ज्ञान लिया है उन लोगों को कैसा रहता दादाश्री : वे मालिक नहीं बनते। भूल से बन बैठते हैं कि 'मुझे ऐसा क्यों हो रहा है, ऐसा क्यों हो रहा है?' बस इतना ही है, मानते हैं इतना ही, वास्तव में ऐसा नहीं है। देह की सारी क्रियाएँ नोकर्म प्रश्नकर्ता : तो अब इस देह में नोकर्म किस जगह पर आते हैं? नोकर्म में किस-किस चीज़ का समावेश होता है? दादाश्री : सभी प्रकार की क्रियाएँ नोकर्म अर्थात् डिस्चार्ज कर्म हैं लेकिन यदि कभी अज्ञानी हो तो उसे चार्ज होता है और ज्ञानी चार्ज नहीं होने देते। खाया, वह भी नोकर्म है, लेकिन अगर तीखा लगा और अंदर अशाता उत्पन्न हुई, तो वह द्रव्यकर्म है। प्रश्नकर्ता : ये अपयश नामकर्म या यशनाम कर्म उदय में आते हैं लेकिन वह जो व्यवहार खड़ा होता है, वह नोकर्म का माना जाएगा? दादाश्री : वह सारा ही नोकर्म है। उदय आने पर जो फल देने लगता है, वह नोकर्म है। प्रश्नकर्ता : यानी कि फल देनेवाले संयोग? दादाश्री : वे सब नोकर्म। (कर्म) अंदर से बाहर निकले तभी से नोकर्म की शुरुआत हो गई। प्रश्नकर्ता : ये जो निकाचित कर्म हैं, वे नोकर्म में ही आ जाते हैं न? दादाश्री : हाँ, वे निकाचित तो इससे भी ज्यादा मज़बूत।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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