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________________ अंतराय कहलाता है। खुद में अनंत ज्ञान है, अनंत दर्शन है, अनंत शक्ति है, अनंत सुख है, अनंत वीर्य है इसके बावजूद भी क्यों इच्छित चीजें नहीं मिलतीं? अंतराय कर्म हैं इसलिए । अज्ञान दशा में मन-वचन-काया के योग में खुद निरंतर तन्मयाकार रहकर अंतराय डाल देता है । उदाहरण के तौर पर कोई मंदिर में दान दे रहा हो तो उसे रोकते हुए क्या कहता है कि मंदिर में दे रहे हो इसके बजाय गरीबों को खिलाओ न! स्कूल और अस्पताल बनवाओ न! अब वहाँ पर मंदिर के लिए अंतराय डालता है और दूसरी जगहों पर देने का पुण्य बाँधता है । यह सारी बुद्धि की अक्लमंदी है । 1 लाभांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय, दानांतराय, वीर्यांतराय, इस प्रकार से मुख्य पाँच प्रकार के अंतराय हैं । ये अंतराय खुद ने ही डाले हुए हैं। पिछले जन्म में जो डाले हैं, उनका इस जन्म में फल मिलता है । जिसेजिसे तरछोड़ (तिरस्कार सहित दुतकारना) लगाई हो, वह सबकुछ इस जन्म में नहीं मिलेगा । जिन्हें खाने-पीने के अंतराय हों उनके घर पर बत्तीस प्रकार का भोजन है लेकिन फिर भी डॉक्टर ने परहेज रखने को कहा होता है, 'रोटी और छाछ ही खाओ ! ' कई बार तो फर्ज़ निभाने के लिए हमें सामनेवाले को रोकना पड़ता है, तब उसका तुरंत ही प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए। पत्नी अगर भारी शरीर की हो और अगर उसे चावल ज़रा ज़्यादा खाने हों तो पति किच-किच करता है ! खाने नहीं देता । अरे, यह तूने डाल दिया अंतराय ! कई लोगों को प्रश्न होता है कि क्या डाइबिटीज़वाले को मिठाईयाँ खाने देनी चाहिए? यदि वह नहीं माने तो फिर क्या हो सकता है? हमने देख लिया उसी वजह से परेशानी है न ! छुप-छुपकर तो वह खा ही लेता है न! ऐसा रखना जैसे आपने देखा ही न हो। हाँ, आपको ऐसा नहीं कहना चाहिए कि ‘मत खाना’। आप उसे सबकुछ विस्तार से समझाना कि इससे 41
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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