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________________ २८८ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) वे ऐसा कहते हैं कि आत्मा का विरुद्ध भाव उत्पन्न हुआ। कहते हैं कि आत्मा में संसार भाव उत्पन्न हुआ। अरे, आत्मा में कभी संसार भाव उत्पन्न होता होगा? विशेषभाव है। दो वस्तुओं का संयोग होने से। वे वस्तुएँ अविनाशी होनी चाहिए, तो उनके संयोग से विशेषभाव उत्पन्न होता है। प्रश्नकर्ता : दोनों में विशेषभाव उत्पन्न होता है? दादाश्री : दोनों में। पुद्गल में भी विशेषभाव होता है और आत्मा में भी विशेषभाव होता है। प्रश्नकर्ता : विशेषभाव दोनों के अलग-अलग उत्पन्न होते हैं या दोनों का मिलकर एक ही होता है? दादाश्री : यह तो ऐसा है न, कि पुद्गल में...... पुद्गल जीवंत वस्तु नहीं है। उसमें भाव नहीं होता लेकिन वह विशेषभाव को ग्रहण करे, इस तरह तैयार हो जाता है। इसलिए उसमें भी बदलाव आता है और आत्मा में भी बदलाव आता है। अब आत्मा इसमे कुछ भी नहीं करता, पुद्गल कुछ भी नहीं करता, विशेषभाव उत्पन्न होते हैं। प्रश्नकर्ता : दोनों का संयोग पास-पास में होने के कारण? दादाश्री : संयोग हुआ कि तुरंत ही विशेषभाव उत्पन्न हो जाता है। प्रश्नकर्ता : मात्र संयोगों के कारण से है या किसी और कारण से? दादाश्री : संयोगों के कारण से है। लेकिन संयोगों के अलावा दूसरा जो कारण है, वह अज्ञानता है, यह बात तो हमें मान ही लेनी है। क्योंकि हम जो बात कर रहे हैं न, वह अज्ञानता की बाउन्ड्री के अंदर की बात कर रहे हैं, वह बाउन्ड्री, ज्ञान की बाउन्ड्री की बात नहीं कर रहे हैं हम। अतः वहाँ पर अज्ञान दशा में आत्मा को यह विशेषभाव उत्पन्न हो जाता है। प्रेरणा पावर चेतन की प्रश्नकर्ता : श्रीमद् राजचंद्र ने कहा है कि 'होए न चेतन प्रेरणा, तो कौन ग्रहे कर्म?' यह समझाइए।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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