SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 380
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२.१२] द्रव्यकर्म + भावकर्म २८७ संयोगों के दबाव से बदल गई बिलीफ प्रश्नकर्ता : भावकर्म किसे होता है, वह ज़रा समझना है। ये भावकर्म कौन करता है? दादाश्री : यह तो ऐसा है न, वास्तव में भावकर्म आत्मा की ही शक्ति है। आत्मा की बिलीफ चेन्ज होती है। उसकी बिलीफ ही, ज्ञान को कुछ भी नहीं होता। बिलीफ को ही होता है। अब, भावकर्म क्यों होते हैं? तो वह इसलिए कि आत्मा तो देखजान सके, ऐसा है लेकिन इस समसरण मार्ग में जो ये सब संयोग मिले, वे सब छ: वस्तुएँ, उनकी वजह से पर्दे, आँखों पर पट्टियाँ बंध जाती हैं। (ऑरिजिनल मूल द्रव्यकर्म) इन आठ कर्मों में से आँखों पर चार कर्मों की पट्टियाँ बाँधी हैं और दूसरे चार कर्म यों देह से भोगने हैं। द्रव्यकर्म, इन चार कर्मों की जो पट्टियाँ बंध जाती हैं न, उनकी वजह से सब उल्टा दिखता है और सबकुछ उल्टा चलता रहता है। खुद अपने आप को उल्टा मानता है, वही भावकर्म है। जब ज्ञान देते हैं तब ये पट्टियाँ निकल जाती हैं। उसके बाद वापस सीधा चलने लगता है। लेकिन वास्तव में इस भावकर्म का कर्ता कौन है? तो वह है अहंकार। जो भोगता है, वही। इसमें आत्मा नहीं भोगता। कुछ लोग कहते हैं कि आत्मा ने भावकर्म किया। इस आत्मा और भावकर्म को जगत् अपने आप ही खुद की भाषा में समझ जाए तो उसका हल नहीं आ सकता। वीतरागों की भाषा में समझना पड़ेगा। और यदि भावकर्म आत्मा का गुण है तो फिर हमेशा के लिए रहेगा। आपको समझ में आ रही है यह बात? अब यह भावकर्म क्या है? दो वस्तुएँ, वस्तु हमेशा अविनाशी होती है, तीर्थंकरों ने इसे वस्तु कहा है, दो अविनाशी वस्तुओं का (जड़ और चेतन का) जब संयोग होता है तब विशेष गुण उत्पन्न होते हैं। दोनों के खुद के गुणधर्म तो हैं ही और फिर विशेष गुणधर्म उत्पन्न होते हैं। जिसे लोग विभाव कहते हैं। लोग इसे खुद की भाषा में विरुद्ध भाव समझते हैं न, तो
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy