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________________ २८६ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) चला जाएगा। अतः इस सेल के पावर का उपयोग हो जाए न, तो फिर यह सेल खाली। व्यतिरेक गुणों से यह पावर खड़ा हो गया है। इसे व्यवहार आत्मा कहते हैं। वास्तव में यह आत्मा नहीं है, 'प्रतिष्ठित आत्मा' है। प्रश्नकर्ता : ये जो दो मूलभूत तत्व इकट्ठे रहते हैं, क्या वे खुद के गुण और स्वभाव को नहीं छोड़ते? दादाश्री : लेना-देना ही नहीं है। कुछ भी लेना-देना नहीं है। यदि कभी क्रोध-मान-माया-लोभ उत्पन्न नहीं होते न, तो आत्मा अंदर रहता और इन्द्रियाँ अंदर खाती रहतीं आराम से, खाना-पीना वगैरह सभी कुछ चलता लेकिन ये व्यतिरेक गुण उत्पन्न हो गए हैं। इसमें क्रोध-मान-मायालोभ खड़े हो गए हैं। ___ 'मैं चदूभाई हूँ' ऐसा मानकर जो कुछ भी किया जाता है, वे सब भावकर्म हैं, अतः उससे कर्म बंध गए। और मैं शुद्धात्मा हूँ,' वह स्वभाव है, इसमें आत्मा स्वभाव में है लेकिन भावकर्म अर्थात् विभाव में है। अतः 'मैं चंदूभाई हूँ' वह विभावकर्म है, वही भावकर्म है। जिनके कारण उल्टा दिखता है, वे सभी भावकर्म कहलाते हैं। जिनके कारण सीधा दिखे, वे स्वभावकर्म कहलाते हैं। अतः भाव जो चीज़ है उसमें से उल्टा दिखता है और भावकर्म उत्पन्न होते हैं। 'यह करूँ और वह करूँ और फलाना करूँ' वे सभी भावकर्म हैं। प्रश्नकर्ता : ये जो भावकर्म होते हैं, 'यह करूँ और वह करूँ,' वे भाव चार्ज भाव हैं या डिस्चार्ज भाव हैं? दादाश्री : ज्ञान लेने के बाद वे तो डिस्चार्ज भाव कहलाते हैं। बाकी सब लोगों में तो वे चार्ज भाव ही हैं न! 'मैं कर रहा हूँ' वही चार्ज भाव है। हाँ. नाटकीय 'मैं' की बात अलग है। नाटिकीय 'मैं' वाला तो कोईकोई ही होता है न। बाकी जहाँ पर कर रहा हूँ' है, तो वह सारा ‘चार्ज' है। लोग जो ये सबकुछ करते हैं, व्यापार चलाते हैं, पैसे कमाते हैं वगैरह उसे 'मैं कर रहा हूँ' कहते हैं, वही भावकर्म है।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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