SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 355
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) है। वर्ना तब तक वह केवलज्ञान नहीं कहा जा सकता। केवलज्ञान कब कहलाता है कि जब ये चारों सभी में एक सरीखे हो जाएँ। कोई श्यामल होता है, कोई गोरा होता है, कोई सुनहरा होता है, सुनहरा कलर (रंग) यानी कि हमारे कलर को सुनहरा कलर कहते हैं। बिल्कुल एक्जेक्ट सोने जैसा नहीं होता। यानी कि कलर सभी तरह-तरह होते हैं, उनमें फर्क होता है। फिर लंबाई में फर्क होता है। हाँ, सुंदर सभी होते हैं लेकिन आकार सभी के अलग-अलग होते हैं। अब वास्तव में तो वह आकार रूप नहीं कहलाता लेकिन सभी एक समान सुंदर दिखते हैं, इसका क्या कारण है? लावण्यता एक सरीखी। यों एक सरीखे सुंदर नहीं होते। अंग और उपांग देखने जाएँ तो रूप अलग-अलग रहता है, लेकिन लावण्यता तो एक सरीखी रहती है। कोई लंबे, कोई मोटे, कोई पतले। मल्लीनाथ भी सुंदर थे। देहकर्मी थे। कहीं यों ही तो, कहीं देहकर्मी के बिना तो वहाँ पर क्या पत्ते लगाने से होता है? नहीं हो सकता है। तीर्थंकर कहलाते हैं। उनकी वेदनीय में फर्क रहता है। भगवान महावीर को बहुत दुःख पड़े थे और बाकी सब तीर्थंकरों को कम। बाकी सब तीर्थंकरों को बहुत सुख मिले। किसी का तीर्थंकर नामकर्म शाता वेदनीयवाला होता है और किसी का अशाता वेदनीयवाला होता है। प्रश्नकर्ता : वह पुण्य के आधार पर होता होगा न? दादाश्री : वही! पुण्य वगैरह सबकुछ। वह इसके अंदर साथ में आ गया। कोई तीर्थंकर नामकर्म सुनते ही पूरी पब्लिक ओहोहो हो जाती है और कुछ नामकर्म सुनते ही मुँह बिचकाकर वापस जाने लगते हैं। यह सब तो तरह-तरह का है। कुछ ऐसे होते हैं जो सभी जातियों में पूज्य बन जाते हैं, फिर भी पूरे हिंदुस्तान में शायद न भी हो और कुछ ऐसे हैं जिनकी पूज्यता कुछ ही जातियों में रहती है। कुछ का आयुष्य छोटा होता है, कुछ का लंबा होता हैं। ऐसा सब फर्क होता है। सभी तरफ से मेल खाने पर मिले ज्ञानीपद कोई भी ज़िम्मेदारीवाला पद प्राप्त हो, तो उसके कैल्क्यूलेशन्स
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy