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________________ [२.१०] घाती-अघाती कर्म २६१ सब लेकिन ये चार घाती क्षय हो सकते हैं। अघाती क्षय नहीं हो सकते। ____ यह ज्ञान मिलने के बाद दर्शनावरणीय चला गया, मोहनीय चला गया, पूरी तरह से चला गया। अंतराय नहीं गए हैं। ज्ञानावरण नहीं गया है, ये जो चार हैं वे आत्मघाती हैं। घातीकर्म कहलाते हैं। तो इन दोनों घाती कर्मों का जैसे-जैसे समभाव से निकाल करोगे वैसे-वैसे आवरण कम होते जाएँगे, वैसे-वैसे अंतराय टूटते जाएँगे। और जो चार अघाती कर्म बंधे हुए हैं, वे जब डिस्चार्ज होते हैं, तब वे शाता-अशाता वेदनीय देते हैं, इतना ही है। अंत तक देते हैं। भगवान को भी अंत तक शाता-अशाता वेदनीय थी, ठेठ निर्वाण होने तक शाता-अशाता दोनों ही वेदनीय रहते हैं। प्रश्नकर्ता : शास्त्र ऐसा कहते हैं कि केवलज्ञानी को फिर अशाता नहीं रहती। दादाश्री : सिर्फ शाता-अशाता वेदनीय रहती है। उनकी शाताअशाता वेदनीय ऐसी नहीं होती, स्थूल नहीं होतीं, बहुत सूक्ष्म होती हैं। फिर भी भगवान को कान में बरु ठोके थे न! भारी आशाता आई थी! प्रश्नकर्ता : भगवान को जो बरु ठोके थे, वह केवलज्ञान से पहले या बाद में? दादाश्री : वह तो केवलज्ञान से पहले। उसके बाद तो ये खटमल वगैरह बहुत काटते थे, बहुत अशाता वेदनीय उत्पन्न हुई थी। इसीलिए तो देवलोगों ने भगवान को महावीर कहा न। ज़बरदस्त अशाता वेदनीय! तीर्थंकरों के द्रव्यकर्म प्रश्नकर्ता : दादा, तीर्थंकरों के वे घाती-अघाती कर्म कैसे होते हैं? दादाश्री : उनके चार अघाती अलग-अलग, डिफरेन्सवाले होते हैं। उनमें से एक वेदनीय है, नाम, गोत्र और आयुष्य वे सभी में डिफरेन्सवाले होते हैं और ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय ये चारों सभी में एक सरीखे टूट चुके होते हैं और एक सरीखे हों तभी केवलज्ञान कहलाता
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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