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________________ [२.१०] घाती-अघाती कर्म (गिनती) होते हैं, तभी वह पद मिलता है। नहीं तो वह पद प्राप्त नहीं हो सकता। तो कौन-कौन से कैल्क्यूलेशन मिलने चाहिए? यह तो मुख्य लक्षण बता रहा हूँ कि ज़िम्मेदारीवाली पोस्ट पर कौन आता है? २६३ I I नामकर्म उच्च होता है, जन्म से ही उच्च होता है । वह आदेय नामकर्म है। बचपन से ही लोग 'आओ भाई, आओ' कहते हैं। बड़ा होने के बाद भी आइए, आइए कहते हैं । जिंदगीभर वह आदेय नामकर्म रहता है । और फिर यशनाम कर्म होता है । यों ही हाथ लगाऊँ तो भी सामनेवाले का काम बन जाता है यानी कि कई तरह के नामकर्म होते हैं । और फिर अंग- उपांग नामकर्म होते हैं। अंग कुरूप नहीं होते। हाथ की उँगलियाँ, पैर की उँगलिया, कान, माथा वगैरह कुछ भी कुरूप नहीं होते। आकार बहुत सुंदर होता है। फिर और क्या होता है? लोकपूज्य गोत्र होता है । और आयुष्य कर्म भी अच्छा लेकर आए होते हैं । और वेदनीय कर्म ऐसा लाए होते हैं कि कम से कम अशाता वेदनीय आती है। देखो न, इस पैर में फ्रैक्चर हुआ लेकिन हमें अशाता वेदनीय नहीं हुई। ऐसे सभी गुणाकार होते हैं, तब यह पद मिलता है। अतः मैं कहीं अपने आप ऐसा नहीं बन गया ! इस काल में तो हमारी शाता वेदनीय बहुत अच्छी कही जाएगी। सारा हिसाब लेकर आए हैं। दादा चार कर्म तीर्थंकर जैसे लेकर आए हैं और ये जो चार कर्म हैं न, वे इस काल की वजह से कच्चे पड़ गए। कच्चे पड़े तभी तो इन सब के साथ उठते-बैठते हैं। देखो न, नाश्ता करने जाते हैं न, नहीं तो नाश्ता करने कौन आए? तो अगर पूर्ण हो गए होते तो आपके हिस्से में कैसे आते? इसलिए अधूरे रहे तो अच्छा हुआ । दादा को इसमें नुकसान है ही नहीं । दादा की इच्छा ऐसी है कि यह जगत् सही ज्ञान और सही मार्ग प्राप्त करे और शांति प्राप्त करे । कुछ मोक्ष पाएँ और कुछ शांति पाएँ, कुछ वीतराग मार्ग को पाएँ और कुछ सच्चे धर्म को पाएँ। यही दादा की इच्छा है, और कोई इच्छा नहीं है । उस इच्छा के लिए ही है यह सबकुछ | तीर्थंकरों की भी ऐसी ही इच्छा रहती है।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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