SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 283
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९० आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) अरे, कितने ही वांधा - वचका (आपत्ति उठाते हैं और बुरा लग जाता है) भी डालते हैं। क्योंकि ओवर वाइज़ हो गया है न? सीधा इंसान वांधा-वचका नहीं डालता, अवरोध नहीं डालता। ऐसा एक साधु ने कहा था कि 'अक्रम मार्ग तो अकर्मियों का मार्ग प्रश्नकर्ता : यह तो पाप बाँधा न! दादाश्री : नहीं, पाप होता तो फल भोगना पड़ता। यह तो अंतराय डाल दिए। अंतराय का अंत नहीं आता। गैर जिम्मेदारीवाला एक भी वाक्य नहीं बोलना चाहिए। इससे क्या होता है? सही बात के लिए अंतराय पड़ जाते हैं और गलत बात प्रकट होती है या फिर किसी को ज्ञान प्राप्ति हो रही हो तो उसमें बाधा डाली जाए तो उससे अंतराय पड़ते हैं। वे ज्ञानांतराय और दर्शनांतराय कहलाते हैं। कोई यहाँ सत्संग में आ रहा हो और मतार्थ की वजह से ऐसा कहे कि 'दादा भगवान के सत्संग में तो जाने जैसा नहीं है।' तो फिर उससे वापस यहाँ नहीं आया जा सकेगा। देखो नौ-नौ सालों से आने का सोच रहे हैं फिर भी अभी तक आ नहीं पाते, क्योंकि अंतराय डालते रहे हैं। आपसे उन साहब ने पूछा कि 'मैं आऊँ?' तब आपने कहा, 'हाँ' तो आपके हाँ कहते ही वे आ गए न तुरंत? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : अंतराय नहीं डाले हुए थे। अगर अंतराय नहीं डाले हुए होंगे तो कुछ भी नहीं है। अंतराय डाले हुए होंगे तो बीस सालों तक भी नहीं आ सकेंगे। मोक्षमार्ग में अंतराय इस तरह प्रश्नकर्ता : अंतराय के बारे में ज़रा समझाइए न कि कई लोग दादा के पास आते हैं लेकिन उन्हें जो पहले का, मान लीजिए कि कोई किसी संत के पास जाता है, तो उसे ऐसा लगता है कि 'अब हमें यह मिल गया
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy