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________________ [२.५] अंतराय कर्म १६९ हो और आप कहो कि, 'भाई, यह वापस वहाँ बेच खाएगा' तो वह आपने अंतराय डाला। वह उसे दे रहा था, उसमें आपने रुकावट डाली अतः उसके फल स्वरूप आपको अंतराय कर्म भोगना पड़ेगा। इसे अंतराय कहा जाता है कि 'भाई, अगर कोई किसी के लिए कुछ कर रहा है तो आप क्यों अंतराय डाल रहे हो?' वह बुद्धि का उपयोग करता है कि 'यह सब गलत रास्ते पर जा रहा है।' आपको वह देखने की ज़रूरत नहीं है। देनेवाला यह है और वह है लेनेवाला। बेटा दो बार कपड़े बदलता हो, तब अगर हम उसे कहें कि 'क्यों बेकार में पैसे बिगाड़ रहा है, सभी कपड़ों को खत्म कर देता है, बिगाड़ देता है' ऐसा कहकर उसमें अंतराय डाला। अपने को नहीं मिलेगा, किसी के बीच में रुकावट मत डालना। प्रश्नकर्ता : लेकिन अपने कितने ही ऐसे फर्ज़ आ जाते हैं तो तब तो थोड़ा अंतराय डालना पड़ता है न! परिवार के बुजुर्ग हैं, इसलिए कई बार तो आवश्यक रूप से बोलना ही पड़ता है। दादाश्री : उसका भी फल तो अवश्य मिलेगा। नहीं तो फिर हमें उसे धो देना चाहिए। कर्म करो लेकिन उसे धो देना चाहिए। धोने का हथियार है ही न । घरवालों को नहीं करना पड़ता सबकुछ? लेकिन यह ज्ञान लेने के बाद, प्रतिक्रमण का हथियार दिया है न! उस हथियारवाले धो देते हैं जल्दी से। ___ हमें ज़रूरत की चीज़ मिलती ही नहीं और अपना इच्छित नहीं हो पाता तो वे सब अंतराय कर्म हैं। अंतराय अर्थात् बहुत पढ़े लिखे हों लेकिन वे जहाँ भी जाएँ, वहाँ पर नौकरी का ठिकाना नहीं पड़ता और जिसके अंतराय टूट चुके हों, वह तो यहाँ से बाहर गया कि तुरंत ही यों अरज़ी देते ही नौकरी मिल जाती अंतराय कर्म क्या काम करता होगा? कई लोग साधन संपन्न होते हैं। उन्होंने अपने घर खाने पर बुलाया हो, उनके घर खाना खाने जाएँ और वह
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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