SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७० आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) हमारे साथ खाना खाने बैठे हों तो हमारे लिए श्रीखंड-पूड़ी परोसते हैं जबकि वह खुद रोटी लेकर बैठता है। तो हम समझ नहीं जाएँगे कि कुछ अंतराय हैं इसके? रोटी और दही लेकर बैठा होता है। 'मज़दूरों जैसा खाना लेकर बैठा है और हमें ऐसा खिला रहा है?' कुछ न कुछ अंतराय होंगे न? क्या अंतराय? डॉक्टर ने कहा होता है, 'तू खाएगा तो मर जाएगा' अंतराय हैं बेचारे के! खाने में अंतराय, पीने में अंतराय, सभी चीजों में अंतराय हैं अभी तो। ऐसा नहीं होता क्या? ऐसा देखा है? श्रीखंड वगैरह सभी कुछ है लेकिन खाने नहीं देते। अंतराय डाले हुए हैं इसलिए चीज़ होते हुए भी खाने नहीं देते। भोग है फिर भी भोगने न दें, वे सभी अंतराय हैं। ऐसे बहुत सारे अंतराय हैं। आवरण और अंतराय प्रश्नकर्ता : ऐसे दो शब्द आए हैं, आवरण और अंतराय। तो आवरण अर्थात् फिज़िकल और अंतराय अर्थात् मेन्टल? दादाश्री : आवरण सूक्ष्म चीज़ है, अंतराय इतना अधिक सूक्ष्म नहीं है। अभी कोई गरीब आए और कोई पाँच रूपए का अनाज देने लगे या ऐसा और कुछ देने लगे तो आप कहते हो कि 'अरे, इसे क्यों दे रहे हो?' अगर आप ऐसा कहते हो तो आपको अंतराय कर्म बंधता है। आप ऐसा जानते हो कि गलत रास्ते पर जा रहे हैं ये लोग, फिर यह भी जानते हो कि ये अनाज बेचकर शराब पीते हैं, इसके बावजूद भी अगर आप ऐसा कहते हो तो भी आपको अंतराय पड़ेगा। वह दे रहा था तो उसमें क्यों रुकावट डाली? यह बुद्धि की दखलंदाजी है न? तो इस प्रकार अंतराय कर्म नहीं डालने चाहिए। बहुत तरह के अंतराय कर्म बाँधते हैं लोग। खाने के अंतराय पड़ते हैं इससे एक व्यक्ति तो अपनी वाइफ से कह रहा था, उन दिनों कंट्रोल (रेशनिंग) था, चावल-वावल वगैरह कम मिलते थे कंट्रोल से और उसकी वाइफ इतने सारे चावल लेती थी थाली में। 'अब वह बेचारी थोड़ी मोटी है तो, चावल खाने दे न बेचारी को! उसे रोटी कम भाती है।' उसका पति रोज़ किच-किच करता था। तो एक दिन उनकी पत्नी मुझ से कहती है,
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy