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________________ १४० आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) प्याज़ देखते ही चिढ़ मचती है। यह दृष्टिरोग है। ये चश्मे गलत हैं। इसलिए किसी को सबकुछ पीला दिखता है और किसी को हरा दिखता है। हरेवाला कहता है कि पीला नहीं है, हरा है। तब हमें समझना चाहिए कि बाहर ऐसा नहीं है लेकिन 'इसे' ऐसा दिख रहा है। इसलिए 'हाँ' कह दो, नहीं तो अभी झगड़ा हो जाएगा। हमें समझ जाना चाहिए कि यह बेचारा कह रहा है, लेकिन खुद की शक्ति से नहीं है, खुद के साधन से नहीं है बल्कि खुद के अवलंबन से कह रहा है। जो भी अवलंबन प्राप्त हुआ, जो चश्मे लगाए हैं न, अर्थात् यह जो द्रव्यकर्म हैं वे चश्मारूपी बन गए हैं। 'उसे' सबकुछ उल्टा ही दिखता है कि 'ये मेरे ससुर आए।' वास्तव में ऐसा है नहीं। आत्मा को ससुर दिखेंगे? आत्मा को आत्मा ही दिखता है लेकिन चश्मे ऐसे हैं कि आत्मा भी ससुर ही दिखता है। ये मेरे जमाई आए। लो! है आत्मा और ये जो ससुर दिख रहा है वह द्रव्यकर्म है। ससुर होता होगा कभी कहीं? और अगर है तो कितने टाइम तक? कुछ टाइम के लिए ही, पच्चीस साल या फिर डिवॉर्स न ले तब तक। डिवॉर्स ले ले तो फिर दूसरे दिन कौन उसे ससुर कहेगा? ये मेरे फादर हैं, ये मेरी मदर हैं, ऐसा सब जो दिखाता है, वह सारा द्रव्यकर्म है। द्रव्यकर्म अर्थात् क्या कि ये उल्टे चश्मे लग गए हैं इसीलिए 'हम' जो हैं उसे जानते नहीं हैं, इस उल्टे चश्मे की वजह से नहीं जानते हैं। उल्टा ज्ञान, उल्टा दर्शन। हरे चश्मे पहनकर आए हों तो हरा दिखता है। अर्थात् भ्रांतिवाले को जगत् भ्रांतिवाला ही दिखता है। इसका निबेड़ा कब आएगा फिर? किसी भी चीज़ का निबेड़ा लाना पड़ता है या नहीं लाना पड़ता? अतः जो द्रव्यकर्म बंधते हैं न, उनकी वजह से 'दृष्टि' उल्टी हो जाने से यह सब चल रहा है, उल्टे-सीधे भाव दिखाई देते हैं। भगवान को क्या भीख माँगने का भाव होता होगा? तो समझ नहीं जाना चाहिए कि कुछ उल्टा-सीधा हो गया है? शादी करने का भाव आए, वैधव्य का भाव आए, तो क्या वह अच्छा लगता है?
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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