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________________ [२.१] द्रव्यकर्म १३९ न? यह बॉडी है तभी शाता (सुख-परिणाम), अशाता (दुःख-परिणाम) वेदनीय हैं न? यह बॉडी है तभी उच्च गोत्र और नीच गोत्र हैं न? और यह बॉडी है तभी मृत्यु है न! अर्थात् आठों प्रकार के कर्म, शरीर है तो सभी उत्पन्न होते हैं। अतः यह जो बॉडी है, वह द्रव्यकर्म है। चश्मे से खड़ी हो गई भ्रांति आत्मा और देह दोनों जुदा ही हैं, फिर भी कौन ऐसा दिखाता है कि एक हैं? तो वह यह कि चश्मे उल्टे हैं, वही द्रव्यकर्म है। अर्थात् हर एक जीव चश्मे लेकर आता है। हर एक के अलग-अलग चश्मे। किसी को ऐसा दिखता है, किसी को ऐसा दिखता है, ये सब द्रव्यकर्म हैं। उल्टे चश्मे हैं उसी से यह सब उल्टा चल रहा है। फिर कभी अगर दूसरा जन्म मिले तब चश्मे बदल जाते हैं। लेकिन जितना जानता है, उस अनुसार चश्मे बदलते जाते हैं। अर्थात् द्रव्यकर्म तो मूल वस्तु है। संसार उत्पन्न होने का मुख्य कारण द्रव्यकर्म है। जैसी द्रव्यकर्म की पट्टियाँ होती हैं, वैसा ही दिखता है। 'खुद को' खुद का ही दर्शन खत्म हो गया है। पट्टियाँ बंध जाती हैं, चश्मे लग जाते हैं और चश्मे के माध्यम से देखना पड़ता है। जैसा दिखाई देता है वही सही! अर्थात् ऐसा है न कि द्रव्यकर्म सबकुछ उल्टा ही दिखाते हैं। जैसे कि किसी व्यक्ति की आँखों की पुतली उल्टी हो तो उसे उल्टा दिखता है उसी तरह से यह द्रव्यकर्म हरा, पीला ऐसे तरह-तरह का दिखाता है और इसलिए इस संसार में भ्रांति उत्पन्न हुई हैं। जैसा है वैसा यथार्थ नहीं देखने दें और भ्रांति उत्पन्न करवाएँ, वे चश्मे हैं, द्रव्यकर्म हैं। इन द्रव्यकर्मों से ही शुरुआत हुई है इस जगत् की। इन चश्मों की वजह से फिर से उसके भाव बदलने लगते हैं, वह है भावकर्म। उसके बाद तरह-तरह की इच्छाएँ उत्पन्न होती हैं। चश्मे की वजह से दिखता है सबकुछ उल्टा द्रव्यकर्म अर्थात् किसी को प्याज़ बहुत भाती है और किसी को
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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