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________________ [२.१] द्रव्यकर्म १४१ द्रव्यकर्म अर्थात् क्या? आँख से कम दिखता है, ज़्यादा दिखता है, चश्मे लाने पड़ते हैं। कान होने के बावजूद भी मुझे क्यों बहरा रहना पड़ता है? मुझे क्यों सुनाई नहीं देता? तो वह इसलिए कि द्रव्यकर्म बिगड़े हुए हैं। भावकर्म बिगाड़े थे इसीलिए, ये द्रव्यकर्म बिगड़ गए। उसी का यह फल है। आठ कर्म क्या हैं? आठ द्रव्यकर्म हैं। यह सारा ज्ञान अनंत है। जो आवरण आ गया है, वह ज्ञानावरण है। अपार दर्शन है लेकिन आवरण आ गया है। वह दर्शनावरण है। दर्शनावरण और ज्ञानावरण की वजह से मोहनीय उत्पन्न हो गया है और उसकी वजह से विघ्न उत्पन्न हुए हैं। वे हैं विघ्नकर्म। अंतराय अर्थात् 'आपको' इच्छित चीजें नहीं मिल पातीं। भटकते रहो तो भी कोई ठिकाना न पड़े। नहीं तो यों सोचते ही चीजें सामने आ जाएँ, उसी को कहते हैं कि 'अतराय कर्म टूट गए।' बहुत गर्मी पड़े तो परेशान हो जाते हैं, सर्दी पड़े तो ठंड लगती है, वह वेदनीय है। फिर हैं, नाम-रूप। नाम रखा है न यह ! चंदू! तो फिर नाम-रूप यानी कि 'मैं ऐसा हूँ, वैसा हूँ, जैन हूँ और फलाना हूँ'। फिर आता है गोत्र। 'बहुत अच्छा इंसान है और खराब इंसान है', ये सब गोत्र कहलाते हैं। उसके बाद में आता है आयुष्य! यहाँ जन्म हुआ है इसलिए मरनेवाला तो है ही। दाढ़ दुःखे, वह भी द्रव्यकर्म है। पढ़ाई-वढ़ाई, बुद्धि वगैरह सब द्रव्यकर्म में आ गया लेकिन वह सब स्थावर है (बदल नहीं सकता)। फिर इनमें से भावकर्म उत्पन्न होते हैं। द्रव्यकर्म तो, क्या भोजन लेंगे वह सबकुछ अंदर है। प्रश्नकर्ता : लिखा हुआ है? दादाश्री : लिखा हुआ नहीं है, अंदर है ही। उपवास भी है। उपवास करने का होगा तो वह ससुर के गाँव में भी भूखा मरेगा। अब इस साइन्स को डॉक्टर कैसे समझेंगे? किसी शास्त्र में नहीं मिलेगा। यह तो अक्रम विज्ञान का रहस्य है।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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