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________________ और उसे वह खुद निहारे तो बस, हो गया । आपको खुद को पता चलता है कि चेहरा बिगड़ गया उसमें हर्ज नहीं है, उन लोगों को हर्ज है अगर चेहरा बिगड़ जाए तो। आपको हर्ज नहीं है लेकिन आप निहारो उसे । प्रश्नकर्ता : पहले आपने एक वाक्य ऐसा कहा था कि 'तू विकल्प मत करना, लेकिन यदि विकल्प हो जाए तो विकल्प और विकल्पी दोनों को देखना। तो फिर तू मुक्त हो जाएगा। दादाश्री : देखना ! ठीक है यही है स्व-रमणता ! जो प्रकृति को निहार चुके, वे बने परमात्मा 'प्रकृति' पराधीन है, आत्माधीन नहीं है। जो 'प्रकृति' को पहचाने वह परमात्मा बन जाए । 'पुरुष' को पहचान ले तो 'प्रकृति' को पहचाना जा सकता है। ज्ञानी हो जाने के बाद पुरुष हो जाता है। पुरुष हो जाने पर पुरुषार्थ शुरू हो जाता है और पुरुष का पुरुषार्थ क्या होता है? तो वह यह कि 'प्रकृति को ही निहारते रहना।' I जो प्रकृति को निहारे वह पुरुष है। प्रकृति को निहार चुका, वह परमात्मा है। तो फिर प्रकृति में क्या-क्या निहारना है? तो वह यह कि 'मन क्या विचार कर रहा है उसे निहारे, बुद्धि क्या - क्या निर्णय लेती है उसे भी निहारे, अहंकार क्या - क्या पागलपन करता है उसे भी निहारे । कहाँ पर टकराता है वह भी निहारे क्योंकि अहंकार अंधा है । धृतराष्ट्र जैसा है। वह तो बुद्धि की आँखों से चलता है । अरे, बुद्धि के अलावा तो इसे कोई रखेगा ही नहीं। यह तो बुद्धि है इसलिए यह सारा रौब पड़ता है। बड़े प्रेसिडेन्ट बन बैठे हैं। बुद्धि प्रधानमंत्री बनती है । जो अहंकार को, इन सब को निहारे, वह है शुद्धात्मा। सिर्फ निहारना ही है इन्हें। प्रश्नकर्ता : कोई व्यक्ति चोरी कर रहा हो, तब उसे पता रहता है कि यह गलत है । अब, चोरी करता है वह भी परिणाम है, यानी कि निर्जरा हो रही है। मन में भाव करता है कि यह गलत है तो वह भी निर्जरा है ? दादाश्री : संसारी लोगों ने, जिन्होंने आत्मा प्राप्त नहीं किया है
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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