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________________ [१.१०] प्रकृति को निहार चुका, वही परमात्मा चंदूभाई जो करते हैं, उस प्रकृति को निहारना, उसे स्वरूप भक्ति कहते हैं। प्रकृति को निहारना ! इसमें करना क्या है? जो निहारता है, वह प्रकृति के लिए रिस्पोन्सिबल नहीं है, जो नहीं निहारते हैं वे रिस्पोन्सिबल हैं। १३१ प्रश्नकर्ता : हम जो विधियाँ करते हैं, नमस्कार विधि, चरणविधि बोलते हैं, वह स्व की भक्ति कहलाती है या हम प्रकृति को देखें, वह ? दादाश्री : नहीं-नहीं ! जो ये विधियाँ बोलते हैं, वे तो चंदूभाई बोलते हैं। चंदूभाई मुक्त होने के लिए बोलते हैं लेकिन उसे आप जानते हो कि चंदूभाई क्या बोले और क्या कच्चा रह गया, वह आप हो । चंदूभाई का क्या कच्चा रह गया, गलती कहाँ पर हुई, जो यह सब जानता है, वह आप हो। आप और चंदूभाई दोनों साथ में ही हो, लेकिन दोनों का व्यापार अलग है। प्रश्नकर्ता : वह तो अलग ही है। दादाश्री : हाँ, बस, बस । दोनों के व्यापार को एक कर देते हो इसलिए मार पड़ती है। प्रकृति को निहारना । उसे स्वरूप भक्ति या स्वरमणता जो कहो वह। स्वरूप भक्ति अर्थात् भक्ति करने में कोई हर्ज नहीं है । रमणता को ही भक्ति कहते हैं । अभी पुद्गल रमणता है । अरे, आम को देखकर अंदर लार टपकने लगती है। उस रमणता को देखो न, कैसा मज़ा आता है! लेकिन चित्त चिपक जाता है वहाँ पर । अगर दादा याद रहें न तो वह आत्मरमणता कहलाती है । ज्ञानीपुरुष खुद का आत्मा है यानी कि मूल आत्मा को पकड़ने में तो अभी देर लगेगी उसे, लेकिन ज्ञानीपुरुष की रमणता करें न, यों आँखों के सामने दिखें चलते-फिरते, तो फिर और क्या चाहिए? इससे ज़्यादा क्या चाहिए? प्रकृति को निहारना, स्व-रमणता है । प्रकृति के अंदर क्या-क्या आया? तो वह है, मन-बुद्धि - चित्त - अहंकार, इन्द्रियाँ वगैरह सबकुछ प्रकृति में आ गया। और अगर कोई चंदूभाई से कहे, 'चंदूभाई, आप में अक़्ल नहीं है, कॉन्ट्रैक्ट का धंधा ठीक से नहीं करते हो, ' और अगर चेहरा बिगड़ जाए
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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