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________________ ७६ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) स्वभाव ही रहता है। उससे हम ऐसा मानते और जानते हैं कि यह पहले ऐसा था और अब क्यों बदल गया है? कर्तापन सहित जो स्वभाव था, वह चेन्ज हो गया, इसलिए हमें बदला हुआ लगता है। लेकिन वास्तव में वह बदला हुआ नहीं है। इसमें से कर्तापन का कुछ भाग खत्म हो गया ज्ञान से। ये जो बच्चे होते हैं न, उनमें सिर्फ स्वभाव ही है और बड़ा होने के बाद स्वभाव कर्तापन सहित होता है। (ज्ञान के बाद) उसका कर्तापन चला जाता है तो सिर्फ स्वभाव ही बचता है। तो हम मन में समझते हैं कि इसका स्वभाव बदल गया है। जो कर्तापन सहित है, उसे हम स्वभाव कहते हैं। वह बदल गया इसलिए फिर मन में ऐसा लगता है कि इसमें यह बदलाव हो गया है। प्रश्नकर्ता : यानी कि कर्तापन जाने के बाद भी मूल प्रकृति स्वभाव तो रहेगा ही? दादाश्री : वह तो रहेगा ही। उसके बाद प्रकृति डिमोलिश होती जाती है। क्योंकि अन्य आवक (कमाई) नहीं रही। एक बार बॉल को डालने के बाद वह ऐसे डिमोलिश होते-होते बंद हो जाती है। फिर से अगर टप्पा लगाया जाए तो वापस शुरू हो जाती है। प्रश्नकर्ता : ‘कर्तापन का स्वभाव कैसा होता है?' ज़रा उदाहरण देकर समझाइए। दादाश्री : क्रोध तो इंसान बच्चे पर भी करता है और बाहर दुश्मन पर भी करता है। उस क्रोध और कर्तापना का स्वभाव कैसा है, बच्चे की ओर? बच्चे के हित के लिए है। जबकि दुश्मन के साथ खुद के हित के लिए है। अतः जब वह बच्चे के हित के लिए क्रोध करता है, वह पुण्य बंधन करवाता है। बच्चे का भला हो, उसके लिए बाप खुद अपने आपको जलाता है। क्रोध अर्थात् जलाना। कर्तापने का स्वभाव खत्म हो जाने पर सिर्फ क्रोध ही रह जाता है। कर्तापन का वह सारा स्वभाव खत्म हो जाए, फिर भी क्रोध होता
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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