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________________ ६८ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) नहीं होना चाहिए, एक बार अगर गाड़ी टूट जाए तो टूट जाए लेकिन कोई मरना तो नहीं ही चाहिए। इतना निश्चय तो होना चाहिए। सब आपका ही है। भगवान ने इसमें दखल नहीं की है। यह सब आपका ही प्रोजेक्शन है। अब, आप इस प्रकृति को जैसी बाँधना चाहो वैसी बंधती जाएगी। जैसे संस्कार आपको मिलते हैं, उसी अनुसार प्रकृति बंधती है। अतः अगर अच्छे संस्कार में रहोगे तो अच्छी प्रकृति बंधेगी और खराब संस्कार में रहोगे तो खराब बंधेगी। इस दुनिया में अगर सिर्फ संसारी सुख चाहिए, कल्पित सुख, तो आप लोगों को सुख दो, जीवमात्र को सुख दो तो आपको घर बैठे सुख मिलेगा। इस जन्म में ही स्वभाव बदल सकता है? प्रश्नकर्ता : दादा, यह स्वभाव प्रकृति का है या अहंकार का है? दादाश्री : यह प्रकृति का है। अहंकार अंदर आ गया है। प्रकृति अर्थात् स्वभाव। इंसान का एक स्वभाव बन गया है, नक्की हो गया है। स्वभाव में वह उसी अनुसार फल देता है, फिर अन्य किसी प्रकार का फल नहीं देता। अगर उसका रिश्वत नहीं लेने का स्वभाव होगा तो भले ही उसके साथ कितनी भी झंझट करो फिर भी नहीं लेगा। ली हुई भी वापस दे देगा। प्रश्नकर्ता : वह स्वभाव वापस बदलता है क्या? दादाश्री : उसका जितना भी स्वभाव है, उसके अंदर जितने-जितने डिविज़न हैं, उनमें से एकाध डिविज़न खत्म होने को हो तब वह बदल जाता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन क्या वह अपने आप ही बदल जाता है? दादाश्री : अपने आप बदल जाता है। प्रश्नकर्ता : खुद प्रकृति को जानता है कि प्रकृति ऐसी है। उसके बाद अगर उसे स्वभाव बदलने का पुरुषार्थ करना हो तो हो सकता है? दादाश्री : अन्य कोई पुरुषार्थ होता ही नहीं है। जो अंदर हो रहा
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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