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________________ [१.६] क्या प्रकृति पर प्रभुत्व प्राप्त किया जा सकता है? ६७ दादाश्री : अगर कम हो जाए तो भी उसे कम करनेवाले आप नहीं हो। वह उसके पुरुषार्थ से नहीं होती, वह साइन्टिफिक समकमस्टेन्शियल एविडेन्स के आधार पर कम होती है या फिर बढ़ भी जाए एविडेन्स के आधार पर वह बढ़ भी सकती है या कम भी हो सकती है। यह प्रकृति अपनी सत्ता में नहीं है इसलिए आपको तो यही देखना है कि 'ओहोहो! इतनी लोभी प्रकृति है तो पूरी जिंदगी यह प्रकृति छोड़ेगी नहीं।' अतः हमें क्या भावना करनी चाहिए कि 'जितना हो सके उतना, मेरी जो कुछ भी जायदाद है उसका उपयोग जगत् कल्याण के लिए हो।' ऐसी भावना की जाए तो इस भावना के फल स्वरूप प्रकृति वापस, अगले जन्म में आपका मन बड़ा रहेगा। जबकि यह तो बिगड़ गई है। यह जन्म तो गया लेकिन अब नया तो सुधारो भाई। अतः इस प्रकृति को देखकर आपको नई सुधारनी है। यह आपको सावधान करती है कि अगर पसंद नहीं हो तो नया सुधारो और अगर पसंद हो तो रहने दो। अतः सिर्फ भावना ही करनी है और कुछ नहीं करना है। एक व्यक्ति ने मुझसे कहा कि मुझे किसी को भी कुचलना नहीं है। मेरे क्या करने से ऐसा हो सकता है कि एक भी जीव मेरी गाड़ी के नीचे नहीं कुचला जाए? तब मैंने कहा, 'निश्चय से भावना कर, निश्चय से कि कभी भी, किसी भी स्थिति में भी यह नहीं होना चाहिए।' उस भावना को इतनी मज़बूत कर दे कि तुझे अंदर हाज़िर रहे फिर तेरे हाथ से कोई नहीं मरेगा। अतः यह जगत् आपकी भावना का ही फल है। अच्छी भावना के बीज डालोगे तो फल अच्छे मिलेंगे। किसी भी इंसान को ऐसी इच्छा नहीं होती कि उसकी गाड़ी के नीचे कोई जीव कुचला जाए, फिर भी कुचल जाते हैं। इसका क्या कारण है? तब कितने ही लोगों से पूछे कि, 'आपकी गाड़ी जा रही हो और कोई व्यक्ति एकदम से आ जाए, तो क्या करोगे?' तब उसने कहा, 'क्या कर सकते हैं? वह तो ऐसा हो ही जाएगा।' वही अंदर फल देता है। यह जो दरवाज़ा खुला रखा उसका यह फल आता है। किसी भी संयोग में ऐसा
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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