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________________ ५४ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) काला है फिर भी मीठा क्यों लगता है? मोह की वजह से। प्रश्नकर्ता : एक बार आपकी वाणी में निकला था कि 'यह फ्रेक्चर हुआ है लेकिन इसमें रिपेयर कौन कर रहा है?' तब कहा था, 'मैं निकल गया हूँ इसमें से।' अतः कुदरत कर देती है यह सारा रिपेयर। दादाश्री : हाँ, और कोई चारा ही नहीं है न! प्रश्नकर्ता : और बहुत जल्दी से करती है। तुरंत ठीक हो गया। जब तक तन्मयाकार रहते हैं तब तक कुदरत की हेल्प नहीं मिलती। दादाश्री : नहीं, लेकिन वे डॉक्टर भी कहने लगे थे कि 'फ्रेक्चर होने के बाद तो बहुत दर्द होता है, आपको दर्द क्यों नहीं हो रहा? बहुत सहन किया है।' मैंने कहा, 'नहीं, मुझ में सहनशीलता नहीं है।' हमारे में सहनशीलता होती ही नहीं। सहनशीलता तो अहंकार का गुण है। हम में ऐसा कुछ भी नहीं है। ज़रा इंजेक्शन देना हो तो ठंडा, ठंडा करने के बाद ही इंजेक्शन दिया जा सकता है।' तब डॉक्टर कहते हैं तो फिर क्या हुआ? यह क्या है?' 'यही है आत्मा!' वे अलग और यह अलग। अलग है लेकिन उसके बाद फिर डॉक्टर ने दूसरे डॉक्टरों से कहा, 'देख आओ, देख आओ, आत्मा देख आओ।' क्योंकि अभी जैसे हैं, उस दिन भी ऐसे के ऐसे ही थे। उसमें कोई फर्क नहीं पड़ा था। डॉक्टर भ्रमित हो सकते हैं लेकिन मैं भ्रमित नहीं हूँ। अमरीका में डॉक्टर भ्रमित हो जाते थे कि 'आपको यह कर लें और वह कर लें।' मैंने कहा, 'अगर ऑपरेशन करने लगेंगे तो मैं मना कर दूंगा। यहाँ पर आपका नहीं चलेगा। इसे खोलना मत, यह पेटी खोलने जैसी नहीं है। सहज स्वभाव से रिपेयर हो जाए ऐसी पेटी है। इसमें उसे आप क्या रिपेयर करोगे?' जैसे भूख अपने आप लगती है न! क्या वह डॉक्टरों के ऑपरेशन करने से लगती है? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : वह तो अपने आप ही लगती है। और ठीक भी होता रहेगा, मालिकी नहीं है इसलिए। तूफान आया और खिड़कियाँ टूट गईं तो उसे ऐसा कहा कि तूफान से टूट गईं अर्थात् दूसरी बार मालिकीपने की
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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