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________________ [१.५] कैसे-कैसे प्रकृति स्वभाव ५५ वजह से टूट जाती हैं। एक तो टूटनी ही थी कुदरती, दूसरी मालिकीपने की वजह से टूट गई। एक बार ही टूटने दे न भाई! तूफान का असर रहना चाहिए जबकि फिर साथ में तेरा भी असर पड़ता है। प्रश्नकर्ता : अब कुदरत में क्या ऐसा नियम है कि खिड़की वापस जुड़ जाएगी? दादाश्री : वह तो जुड़ ही जाएगी। कुदरत का तो ऐसा नियम है ही। बाल को अगर हम निकाल दें तो वह फिर से उग ही जाता है। चाहे सफेद, तो सफेद, लेकिन उग जाता है। प्रश्नकर्ता : अब अगर मालिकीपना नहीं रखें और उसके बजाय यह निदिध्यासन रहे, तो वह भी इतना ही काम करता है न रिपेयरिंग का? दादाश्री : करता है न, रिपेयर करता है न सारा। हम अगर जानकर, समझकर छोड़ दें तो कुदरत सबकुछ अपने आप करती ही रहती है। डॉक्टर की क्या ज़रूरत है? और अगर आए तो मना नहीं करना चाहिए। आए तो दवाई ले लेनी चाहिए। रात-दिन उसका ध्यान नहीं करना है कि मुझे इस दवाई की ज़रूरत है। अगर सहजरूप से मिल जाए तो पी लेनी चाहिए। 'ऑपरेशन मत करना' कहा 'भाई, अब तू खोलना मत इस पेटी को इसमें मज़ा नहीं है, तू फँस जाएगा!' प्रकृति श्रेष्ठ इलाज करती है देह का प्रश्नकर्ता : सभी संयोग उदयकर्म के अधीन हैं, मुझे सभी चीजें अपने आप ही मिल जाती हैं। अब उन्हें सेट करनेवाला कोई और तो है नहीं, तो उस चेतन में ऐसी शक्ति होगी या उन अणुओं में ही इतनी अधिक चेतनता होगी कि वे वहाँ पहुँच जाते होंगे? दादाश्री : चेतन को इससे कुछ लेना-देना नहीं है। यह तो जैसे सिनेमा की फिल्म चलती है न, वैसे ही यह जो फिल्म है, वह प्रकृति का गुण है। स्वभाव से सेट हो जाते हैं। डॉक्टर आपका इलाज करे, उसके बजाय प्रकृति बहुत सुंदर इलाज करती है। डॉक्टर तो जो नहीं देना हो वह
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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