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________________ आप्तवाणी-८ ४७ अतः अहंकार ही जन्म लेता है, ऐसा कहो न ! अहंकार को पहचानते हो या नहीं पहचानते? अहंकार ही देह धारण करता है बार-बार । एक तो व्यवहार आत्मा है और एक खरा आत्मा है । खरा आत्मा बँधा हुआ नहीं है, वह शुद्ध ही है। यानी अहंकार की ही गड़बड़ है यह । अहंकार चला जाए तो मोक्ष हो जाएगा। बस, इतनी छोटी-सी बात समझ में आएगी न? जिसे सूक्ष्मदेह कहते हो वह, वही दूसरे जन्म में जाती है। यह प्रमाण तो हमें समझ में आता है न? बाकी सूक्ष्म को तो किस तरह से पहचानोगे? सूक्ष्म वस्तु अलग है, उसे तो 'ज्ञानी' ही जानते हैं । यह तो लोग किताब में पढ़कर 'सूक्ष्मदेह, सूक्ष्मदेह' बोलते हैं। बाकी जो स्थूल को ही नहीं पहचानता, वह सूक्ष्म को किस तरह से पहचानेगा? किस पर किसकी वळगणा प्रश्नकर्ता : आत्मा पुद्गल से चिपका हुआ है या पुद्गल आत्मा से चिपका है? दादाश्री : ऐसा है न, कोई किसीसे चिपका हुआ है ही नहीं, सबकुछ नैमित्तिक है। यह तो लोग व्यवहार में कहते हैं कि, 'आत्मा चिपक गया है।' इसीलिए तो लोग ऐसा कहते हैं कि, 'इस पेड़ को तूने पकड़ा है, तू छोड़ दे', लेकिन ऐसे छोड़ने से क्या छूटता होगा? यह तो 'साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स' है। प्रश्नकर्ता : लेकिन ऐसा दिखता है कि आत्मा इस पुद्गल से चिपका हुआ है। आत्मा पुद्गल में तन्मयाकार हो जाता है, इसलिए ऐसा हुआ है। दादाश्री : वह तो अनिवार्यतः होना ही पड़ता है। प्रश्नकर्ता : आत्मा को यह अनिवार्यता क्यों हुई? किसने अनिवार्य किया? दादाश्री : यह सब तो ऐसा है न, आत्मा चैतन्य है और यह पुद्गल
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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