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________________ ४६ आप्तवाणी-८ दादाश्री : जो पानी हमने जलाया न, उस पानी में ही हाइड्रोजन और ऑक्सीजन दोनों साथ में निकलते हैं और बाद में वे अलग हो जाते हैं। लेकिन जब उड़ते हैं, तब दोनों साथ में उड़ते हैं। लेकिन बाद में अलग होते हैं और फिर से इकट्ठे होते हैं। यह हिसाब है। कर्म के हिसाब से इलेक्ट्रिकल बॉडी चिपकी हुई ही रहती है। यानी अन्य कोई मिलावट नहीं होती। यह इलेक्ट्रिकल बॉडी संपूर्ण भवपर्यंत एक ही रहती है और उसमें बाहर का और कुछ भी उसे छूता नहीं है। जैसे कि यह शरीर, दूसरे शरीर को घुसने नहीं देता, उसी प्रकार इस सूक्ष्म शरीर का है, यह स्थूल शरीर आँखों से दिखता है और सूक्ष्म शरीर आँखों से नहीं दिखे, ऐसा होता है, और कोई फ़र्क नहीं है। इसमें आकार वगैरह एक जैसा, सिर्फ इतना ही कि यह स्थूल दिखता है और सूक्ष्म शरीर नहीं दिखता, इतना ही। यानी इसमें कुछ भी मिश्रित नहीं हो सकता, यह सूक्ष्म शरीर किसी और को नहीं मिलता। इसमें भी ममता है न, उसी प्रकार से वहाँ पर सूक्ष्म देह में भी ममता है, सभीकुछ है। ऐसा है न, जब तक संसार अवस्था है तब तक सूक्ष्म शरीर साथ में रहता ही है। संसार अवस्था अर्थात् भ्रांति की अवस्था। जब तक वह है तब तक सूक्ष्म शरीर रहता है। प्रश्नकर्ता : तो सूक्ष्म देह में आत्मा स्वतंत्र है या बँधा हुआ दादाश्री : स्वतंत्र ही है, बँधा हुआ नहीं है। व्यवहार आत्मा बँधा हुआ है और खरा (निश्चय) आत्मा बँधा हुआ नहीं है। जिसका आप व्यवहार में उपयोग करते हो, वह आत्मा बँधा हुआ है। प्रश्नकर्ता : यह जो फिर से जन्म लेता है, वह सूक्ष्म देह लेता है न? दादाश्री : हाँ, तो फिर आप ऐसा कहो न कि यह अहंकार जन्म लेता है! सूक्ष्म देह को तो पहचानते ही नहीं, कभी भी सूक्ष्म देह को तो देखा ही नहीं। सूक्ष्म देह शब्द बोलना सीख गए, वह तो किताब में पढ़कर।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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