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________________ आप्तवाणी-८ प्रश्नकर्ता : लेकिन उसे रियलाइज़ करने के लिए ये सब छोड़कर हिमालय पर चले जाएँ? दादाश्री : नहीं, हिमालय पर नहीं जाना है। हम आपको एक घंटे में 'सेल्फ रियलाइज़ेशन' करवा देंगे। ऐसे साधु बनकर हिमालय में नहीं जाना है। यहाँ तो अरे, खा-पीकर मौज करना और 'सेल्फ' का 'रियलाइज़ेशन' रहेगा! प्रश्नकर्ता : लेकिन ऐसा कहते हैं न, कि आत्मा हर बार मनुष्य देह ही धारण करता है। दादाश्री : नहीं, नहीं, नहीं। ऐसा तो कुछ लोगों ने कहा ज़रूर है कि मनुष्य में से मनुष्य ही बनता है, लोगों ने ऐसा आश्वासन दिया कि जैसे गेहँ में से गेहँ बनता है, वैसे ही मनुष्य में से मनुष्य बनता है। इससे लोग समझते हैं कि ठीक है, मनुष्य बननेवाले हैं तो कोई हर्ज ही नहीं है न! जितनी रिश्वत लेनी हो उतनी ले लो, जितनी चोरी करनी हो उतनी चोरी कर लो? लेकिन यह ऐसा नहीं है। यहाँ तो नियम ऐसा है कि जिसने अणहक्क (बगैर हक़)का लिया, उसके दो पैर में से चार पैर हो जाएँगे। लेकिन वह भी हमेशा के लिए नहीं। अधिक से अधिक दो सौ वर्ष और बहुत हुआ तो सात-आठ जन्म जानवर में जाएगा और कम से कम हुआ तो पाँच ही मिनट में जानवर में जाकर वापस मनुष्य में आ जाएगा। कितने जीव ऐसे हैं कि एक मिनट में १७ जन्म बदलते हैं, यानी ऐसे भी जीव हैं। अतः जो जानवर में गए, उन सभी को सौ-दो सौ वर्ष का आयुष्य नहीं मिलेगा। प्रश्नकर्ता : मनुष्यगति के जीव यह कारण शरीर और कषाय साथ में लेकर जाते हैं। परन्तु निचली गति के जीव क्या लेकर आते हैं? दादाश्री : ऐसा है न, वे तो ‘लोड' उतारने गए हैं। जो ‘लोड' इकट्ठा किया था न, जो उधार लिया हो, वह उधार चुकाने जाना पड़ता है। और यदि किसीसे लेना हो तो लेने जाते हैं। क्रेडिट किया हो तो देवगति में जाना पड़ता है, या फिर यहाँ मनुष्य में राजा बनना पड़ता है। और अगर
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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