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________________ आप्तवाणी-८ वे दोनों ही होते हैं, और वहाँ जाते ही भूख के मारे उनको वह सारा ही खा जाता है। और खाकर फिर पिंड बनता है । बोलो अब, ये सब साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स हैं न? २७ तब फिर यहाँ से निकलने में देर नहीं लगती। अब वहाँ पर यदि ऐसा टाइम सेट नहीं हुआ हो न, तब तक यहाँ पर इस देह में उं.. उं.. उं.. करता रहता है।‘क्यों निकलते नहीं हो? जल्दी जाओ न' यदि ऐसा कहें, तब कहेगा, ‘नहीं अभी तैयारी नहीं हुई है वहाँ पर !' ऐसे अंतिम घड़ी में उं..उं..उं..करता है न? वहाँ पर 'एडजस्ट' हो जाने के बाद यहाँ से निकलता है। लेकिन जब निकलता है, तब वहाँ पर सब पद्धतिपूर्वक ही होता है । ज़िन्दगी के सार के अनुसार गति प्रश्नकर्ता : मरने से पहले जैसी वासना हो, उस रूप में जन्म होता है न? दादाश्री : हाँ, वह वासना, लोग जो कहते हैं न कि मरने से पहले ऐसी वासना थी, लेकिन वह वासना लाने से लाई नहीं जा सकती। वह तो सार है पूरी ज़िन्दगी का। पूरी ज़िन्दगी आपने जो कुछ किया न, उसका मृत्यु के समय, अंतिम घंटे में सार आ जाता है । और उस सार के अनुसार उसकी गति हो जाती है। प्रश्नकर्ता : मृत्यु के बाद सभी लोग मनुष्य के रूप में जन्म नहीं लेते। कोई कुत्ते या गाय भी बनते हैं। दादाश्री : हाँ, उसके पीछे 'साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स' हैं, सभी वैज्ञानिक कारण इकट्ठे होते हैं । इसमें इसका कोई कर्ता नहीं है कि 'भगवान' ने यह नहीं किया है और 'आपने' भी यह नहीं किया है। 'आप' सिर्फ मानते हो कि 'मैंने यह किया' इसीलिए अगला जन्म उत्पन्न होता है। जब से ‘आपकी' यह मान्यता टूट जाएगी, 'मैं कर रहा हूँ' की ' रोंग बिलीफ़', वह भान 'आपका' टूट जाएगा और 'सेल्फ' का 'रियलाइज़ेशन' हो जाएगा, उसके बाद 'आप' कर्ता रहोगे ही नहीं ।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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