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________________ आप्तवाणी-८ प्रश्नकर्ता : आप ऐसा भी कहते हैं और वैसा भी कहते हैं। दादाश्री : 'बाइ रिलेटिव व्यू पोइन्ट' भगवान साकार हैं और 'बाइ रियल व्यू पोइन्ट' निराकार हैं। प्रश्नकर्ता : उस अलौकिक भाषा को कहाँ सीखने जाएँ? दादाश्री : यहीं पर सीखनी है। आपका नाम चंदूलाल, और छोटे थे तब भी चंदूलाल था, और शादी के बाद भी चंदूलाल है न? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : और फिर 'पति' किसके बने? किस आधार पर? पहले 'पति' थे? प्रश्नकर्ता : नहीं, पहले नहीं था। दादाश्री : लेकिन 'आप' वही के वही हो न? यही मेरा कहना है कि इस तरह से, जब निमित्त मिलता है न, तो उस संबंध से 'आप' 'पति' कहलाते हो। यह सापेक्ष बात है। उसी प्रकार रिलेटिव संबंध से भगवान साकार हैं और संबंध के बगैर भगवान निराकार हैं। यानी तुझे यदि निराकार भगवान को भजना है, निराकार की पहचान करनी है तो साकारी भगवान के पास जा। निराकार भगवान आँखों से दिखेंगे नहीं और तुझे बुद्धि से समझ में नहीं आएगा। तुझे किसी भी प्रकार से निराकार समझ में आएगा ही नहीं, लेकिन जिनमें निराकार प्रकट हो चुके हों, ऐसे साकारी भगवान के पास जा। यहाँ मनुष्यरूप में मुख्य साकार भगवान किसे कहते हैं? 'ज्ञानीपुरुष' को कि जिनमें, मनुष्यरूप में जिनके अंदर निरंजन-निराकार प्रकट हो चुके हैं ! वे साकार भगवान कहलाते हैं !! प्रश्नकर्ता : लेकिन आत्मा की किसी आकार के रूप में कल्पना करनी हो तो कैसी कल्पना करें?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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