SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-८ प्रश्नकर्ता : किस तरह से? दादाश्री : यहाँ साथ में बैठकर, ज़रा 'टाइम' निकालकर, विशेष रूप से बैठकर 'ज्ञानीपुरुष' से परिचय करना पड़ेगा! आत्मा की अनंत ज्ञानशक्तियाँ हैं, एकाध-दो ज्ञानशक्तियाँ हैं, ऐसा नहीं है। ये अनंत ज्ञानशक्तियाँ हैं, उसके आधार पर तो ज्योतिष ज्ञान, वकालत का ज्ञान, डॉक्टरी ज्ञान, ये सारा ज्ञान अनावृत हुआ है। हर एक के अलग-अलग ‘सब्जेक्ट्स' होते हैं, वे सभी ज्ञान अनावृत हो जाएँ, इतनी सारी ज्ञानशक्तियाँ हैं ! यानी आत्मा अनंत शक्ति का धनी है! अनंत ज्ञान शक्ति हैं और अनंत वीर्य शक्तियाँ हैं !! बहुत ग़ज़ब की शक्ति के मालिक हैं, ऐसे ये परमात्मा हैं !!! 'पटेल' पड़ोसी और 'खुद' 'परमात्मा' में प्रश्नकर्ता : आत्मा का वह स्वरूप कैसा दिखता है? तेजस्वी दिखता है या कुछ आकृति दिखती है? दादाश्री : वह आकृति नहीं है, वैसे ही निराकृति भी नहीं है। यह आकृति वगैरह तो सब मनुष्य की कल्पनाएँ हैं, बुद्धिजन्य विषय हैं। आत्मा तो आत्मा ही है, प्रकाशस्वरूप है। हाँ, जिस प्रकाश को स्थल की भी ज़रूरत नहीं है, आधार की भी ज़रूरत नहीं है, ऐसा प्रकाशस्वरूप है आत्मा का। और पहाड़ों के भी आरपार जा सके ऐसा है, ऐसा वह आत्मा है और ऐसे 'आत्मा' में 'मैं' रहता हूँ!!! यानी इन 'ए.एम.पटेल' को कोई गालियाँ दे, मारे, तो भी 'मुझे' कुछ नहीं होता। 'मैं' अलग, 'पटेल' अलग। 'पटेल' पड़ोस में हैं और व्यवहार जो कर रहे हैं, वह 'पटेल' कर रहे हैं। आत्मा : साकारी या निराकारी? प्रश्नकर्ता : ऐसा कहते हैं कि भगवान तो तेज के अंबार हैं, निरंजननिराकार हैं। दादाश्री : और भगवान साकारी भी हैं।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy