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________________ आप्तवाणी-८ १७ दादाश्री : उसके आकार की कल्पना करना योग्य नहीं है, उसके बजाय साकारी भगवान के पास बैठना चाहिए। साकारी भगवान, वही आत्मा का स्वरूप! जो देहसहित आत्माज्ञानी हैं, वे साकारी भगवान कहलाते हैं, उस तरह से कल्पना करना, संपूर्ण देहमंदिर सहित उनके दर्शन करने चाहिए। बाकी, आत्मा का आकार नहीं है। उसका निराकार स्वरूप 'ज्ञानीपुरुष' के पास से जानना पड़ेगा! और फिर उसका स्वरूप आपकी समझ में फ़िट हो जाएगा, फ़िट हो जाए, वह फिर भूल नहीं पाओगे! अतः आत्मा का आकार नहीं होता, वह निराकारी वस्तु है। फिर भी स्वभाव से आत्मा कैसा है? जिस देह में है, उस देह का जो आकार है, उस जैसे आकार का है। परन्तु वहाँ पर सिद्धगति में अंतिम देह के आकार के एक तिहाई भाग जितना आकार कम हो जाता है। यानी दो तिहाई भाग के आकार का रहता है। यानी कि जो पाँचवे आरे का देह होता है और तीसरे आरे (कालचक्र का एक भाग) का जो देह होता है, उनमें बहुत ग़ज़ब का फ़र्क है। वह ऊँचाई अलग और यह ऊँचाई अलग। परन्तु जिस चरमदेह से काम हुआ, उसी देह के अनुसार वहाँ पर, सिद्धगति में आकार होता है, परन्तु आत्मा निराकार है। प्रश्नकर्ता : वहाँ परछाई जैसा होता है? क्या होता है? दादाश्री : नहीं, परछाई जैसा नहीं है, ऐसी कोई वस्तु वहाँ पर नहीं होती। परछाई, वह पदगल है। प्रश्नकर्ता : जैसे हम हवा में हाथ घुमाएँ तो कुछ हाथ में नहीं आता, वैसे ही मोक्ष में जाएँ और हाथ ऐसे घुमाएँ तो हमसे कुछ टकराएगा क्या? दादाश्री : नहीं। ऐसे हाथ घुमाएँगे तो कुछ भी हाथ में नहीं आएगा। अरे, यह अग्नि लेकर आत्मा के अंदर ऐसे घुमाएँ तब भी आत्मा जलेगा नहीं। ऐसे अंदर हाथ घुमाएँ तो भी आत्मा हाथ को स्पर्श नहीं होगा। आत्मा ऐसा है। उस आत्मा में बर्फ घुमाएँ तब भी ठंडा नहीं होगा, उसमें तलवार घुमाओ तो वह कटेगा ही नहीं।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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