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________________ सही समझ, सर्वव्यापक की १७१ आत्मा को बंधन... १९० प्रमेय के अनुसार प्रमाता-आत्मा १७३ मोक्षदाता मिलने से, मिले मोक्ष १९२ प्रमेय ब्रह्मांड, प्रमाता परमात्मा १७४ मोक्ष प्राप्ति का भाव किसका? १९३ सापेक्ष दृष्टि से सर्वव्यापक १७५ ... और आवागमन भी अहंकार का ही १९५ जगत् में सभी ओर आत्मा ही? १७६ दु:ख, आत्मा स्वरूप को है ही नहीं १९६ तादृश, दृष्टांत में, 'मौलिक स्पष्टीकरण' १७७ द्वंद्वों ने दिए बंधन १९८ आत्मा निर्गुण है या अनंत गुणधाम? १७९ लेकिन मोक्ष साधे तो काम का १९९ नहीं है निर्गुण जगत् में कोई १८० क्या सर्वात्मा का मोक्ष संभव है? १९९ अंत में तो प्राकृत गुणों को ही नमो सिद्धाणं, की भजना ध्येय स्वरूप से२०१ पोषण मिला १८२ सिद्ध की नहीं है प्रवृत्ति, फिर भी क्रिया २०२ रूपक, लौकिक और अलौकिक दृष्टि से१८३ सिद्धक्षेत्र की कैसी अद्भुतता २०२ मोक्ष अर्थात् स्व-गुणधर्म में प्रवृत्त १८९ ग़ज़ब का सिद्धपद, वही अंतिम लक्ष्य २०३ करेक्टनेस समझना, 'ज्ञानी' से १८९ [खंड : २] 'मैं कौन हूँ?' जानें किस तरह? २०६ नहीं मिट सकता खुद से पोतापणुं २२९ अब, फेरे टलें किस तरह? २०६ यह समझने की कोशिश फलेगी क्या? २३० टेम्परेरी को देखनेवाला ही परमानेन्ट २०८ यह तो पराई चिट्ठी 'खुद' ने ले ली २३१ खुद के गुण कौन से? उसमें भी भूल २११ संसार में असंगता, कृपा से प्राप्त २३१ वह गुप्तस्वरूप, अद्भुत! अद्भुत २१२ सर्वांगी स्पष्टत समझ से उलझन जाए २३३ मान्यता की ही मूल भूल... २१३ रिलेशन में भूला 'खुद' खुद को २३३ ...यह भ्रांति कौन मिटाए? २१४ बदली बिलीफ़, 'वस्तु' संबंधी २३४ विनाशी और अविनाशी का भेद क्या है?२१५ मुक्ति मांगे सैद्धांतिक समझ विनाशी धर्म में, अविनाशी की भ्रांति २१७ स्व-स्वभाव में, बरतने से समाधि २३६ परमात्मा पहुँचाएँ प्रकाश और परमानंद २१८ ऐसे काल में प्रयत्नों से प्राप्ति संभव है? २३७ स्वभाव की भजना से, स्वाभाविक सुख २१९ क्रिया नहीं, भान बदलना है २३८ ऐसा स्वरूप जगत् का रहा २२० आत्मविकास में नहीं होती, प्रतिकूलता कर्तापद, वही भ्रांति २२१ कभी २३८ आत्मा को सुना नहीं, श्रद्धा नहीं रखी, प्रत्यक्ष से लाभ उठा लो २३९ जाना नहीं, तो... २२२ समझ बिना क्या साधना करे? २३९ अध्यात्म के अंधकार को विलीन करे अध्यात्म के बाधक कारण २४० २२२ जगत् में अध्यात्ममार्ग कहाँ? २४१ ज्ञानी बर्ताएँ, आत्मपरिणति में २२३ पापों के जलने से ही, लक्ष्य-जागृति बरते२४४ ज्ञानांक्षेपकवंत विचारधारा काम की... २२४ 'एक' के बिना शून्य की स्थिति बेकार २४५ जो मोक्ष में न रखें, वे मोक्षदाता ही नही २२६ आत्मा तो, निरीक्षक के भी उस पार २४७ अनादि से स्वरूप निर्धारण में ही भूल २२६ अनुभूति की उल्टी आँटी २४८ सभी साधन बंधन बने २२७ माना हुआ नहीं, जाना हुआ होना चाहिए २४९ ३७ २३५ ज्ञानी
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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