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________________ २९० ज्ञानी के बिना कोटि उपाय भी व्यर्थ २५२ क्या नहीं है, जानें किस तरह? २८७ जगत् में चेतन कब जाना जा सकता है?२५३ अक्रम मार्ग पर लिफ्ट में मज़े से मोक्ष २८८ देहाध्यास छूटने पर आत्मानुभव २५५ ज्ञानी के पास पहुँचा, वही पात्रता । २९० ओहोहो! आत्मज्ञान की अद्भुतता कैसी २५६ जिज्ञासु वृत्ति तो प्राप्त करवाए वस्तु वह जाननेवाला, कितना शक्तिवान २५८ अक्रम मार्ग की अद्वितीय सिद्धियाँ २९२ अरूपी को अरूपी का साक्षात्कार २५९ अहो! आत्मा को जानने का मतलब तो...२९३ अनुभव भिन्न! साक्षात्कार भिन्न २५९ ...ज्ञानी के भेदज्ञान से जाना जा सकता है २९४ अनुभवी ही करवाए आत्मानुभव २६० वीतराग दृष्टि से, विलय होता है संसार २९४ जो टिके नहीं, वह आत्मानुभव नहीं २६० दृष्टि बदले बिना सबकुछ व्यर्थ २९६ अनुभव के बाद में बरते चारित्र २६१ ज्ञानी कृपा से बदले दृष्टि २९८ शुद्ध स्वरूप की प्राप्ति 'मैं' को ही २६१ इन्द्रियों का अंतरमुख या आत्मारूप होना? २९९ अज्ञान है, तभी तक अहंकार २६२ ...वे सभी मिकेनिकल एडजस्टमेन्ट ३०० सर्व अनुभवों से न्यारा, आत्मानुभव २६२ सभी असरों का कारण अहंकार ही ३०१ बात में आ जाए तब... २६३ शुद्धता की शंका का शमन किस तरह? ३०३ आत्मज्ञान ज्ञानी के पास से.... २६४ दर्शन बदला, आत्मा नहीं ३०४ वस्तु प्राप्ति की प्रतीति... २६६ निबेड़ा लाने का तरीक़ा अनोखा ३०५ बँधे, बिलीफ़ द्वारा... २६७ 'ज्ञान' तो करे ओपन 'हक़ीक़त' ३०६ अंत में आत्मरूप होने पर ही मुक्ति २६८ संसारकाल में, अमल अज्ञानता का ही ३०८ देह छूटे लेकिन बिलीफ़ नहीं छूटती २७१ 'कर्म का कर्ता' कौन? ३१२ बिलीफ़ बदलने से, छूटें कर्म २७१ अशुद्धता की उत्पत्ति किसमें? ३१४ बिलीफ़ से बिलीफ़ का छेदन २७२ 'व्यवहार आत्मा', को माना गया निरालंब की दृष्टि से,वस्तुत्व का सिद्धांत २७३ ‘निश्चय आत्मा' ३१५ ज्ञानी के प्रयोग से,आत्मा-अनात्मा भिन्न २७३ 'रूपक' की निर्जरा, लेकिन 'बिलीफ़' ज्ञानप्राप्ति, भावना के परिणाम स्वरूप २७४ से 'बंध' ३१६ .....तो ज्ञानांतराय टूटेंगे २७४ 'प्रत्यक्ष' ज्ञानी ही, 'हक़ीक़त' प्रकाशित ...तब आत्मवर्तना बरतती है २७४ करें ३१९ शुद्धात्मा शब्द की समझ २७६ अवक्तव्य अनुभव, मौलिक तत्व के ३२० सोहम् से शुद्धात्मा नहीं साधा जा सकता २७७ आत्मा से आत्मा का दर्शन? ३२० शुद्ध हो जाने पर शुद्धात्मा बोल सकते हैं२७७ सुनार की दृष्टि तो शुद्धता पर ही ३२१ प्रकट से प्रकटे, या पुस्तक के दीये से? २७८ रियल-रिलेटिव, स्पष्टीकरण विज्ञान के ३२२ समरण से शुद्धात्मा नहीं है साध्य २७९ ज्ञानी तो सहज ही सिद्धांत प्रकाशमान बाड़ाबंदी तो विभाविकता में २८० करें ३२३ रोंग बिलीफ़ मिटने से भगवान में अभेद २८१ जग-अधिष्ठान, ज्ञानी के ज्ञान में शुद्धता बरते इसलिए, शुद्धात्मा कहो २८२ दर्शन शुद्ध होने पर शुद्ध में समावेश ३२५ कर्ताभाव में बरतने से कर्मबंधन २८३ मूलस्वरूप के भान से खुद का उद्धार ३२६ शुद्ध-अशुद्ध, किस अपेक्षा से २८५ 'क्या है' जाना, लेकिन... २८६ ३८ ३२४
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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