SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गति में भटकने का कुदरती नियम भिन्नता देखी, भ्रांति से ... जगत् कल्याण की अद्भुत, अपूर्व भावना८८ ९१ .... तब 'ज्ञान - प्रकाश' में आएगा वर्ल्ड की वास्तविकता, प्रकाशमान करें 'ज्ञानी' ही ८५ ८६ ९२ ९३ ९९ जगत् का जाना हुआ आत्मा तो ... और वीतरागों की दृष्टि से आत्मा तो ... ९६ मिश्रचेतन, बाद में मिकेनिकल बना इगोइज़म, फिर भी साधन के रूप में वस्तुत्वत: 'मैं' क्या है? आत्मज्ञान जानें ? या फिर ... ... उसका आसान तरीक़ा क्या है ? संपूर्ण अज्ञान जान ले, तब भी आत्मा मिल जाए यथार्थ रूप में जगत् १३२ १३२ १३३ १३४ १३५ दृष्टिफेर से दशाफेर बर्ते १३६ १३८ खुद शिव है, लेकिन भ्रांति से जीव है १३७ जानकार ही जुदा कर सकते हैं जीव और आत्मा, नहीं हैं भिन्न न ही १०० अभिन्न १०० मैं, बावो, मंगलदास अद्वैत की अनुभूति कब ? द्वंद्वातीत होने से अद्वैत भेद, ब्रह्मदर्शन-आत्मदर्शन का पहले ब्रह्मनिष्ठ, फिर आत्मनिष्ठ ब्रह्म तो शब्द से भी परे है अहो ! अहो उस दृष्टि को स्व-स्वरूप सधे ज्ञानी के सानिध्य में १०२ . ऐसा भान होने की ही ज़रूरत ..... १०२ आत्मभान होने पर, खुद अमर भ्रांति टूटने से मिटें भेद १४४ १०४ 'मैं- तू' के भेद से, अनुभूति नहीं होती १४५ १०४ ...लेकिन रास्ता एक ही है वेद थ्योरिटिकल, विज्ञान प्रेक्टिल अनिवार्यता, 'ज्ञानी' की १४६ १०५ कर्ता-भोक्ता, यह अवस्था है जीव की १४८ १०७ विरोधाभासी व्यवहार का अंत कब आएगा ? १४९ १०९ उल्टी मान्यताएँ, ‘ज्ञानी' ही छुड़वाएँ ११० भ्रांति का, कितना अधिक असर शब्द भी अनित्य १४९ १५२ १५२ १५६ साधन भी समाए विकल्प में विकल्पों के कारण चूक जाते हैं अंतिम मौका १११ 'वस्तु' एक, दशाएँ अनेक अबुध होने पर, अभेद हुआ जाएगा ११२ मुक्त पुरुष को भजे तो मुक्त होता है १५५ स- इति तो भेदविज्ञान से ही ११३ दशा फेर के लक्षण आत्मप्राप्ति, किसके पास से संभव ? ११४ खुद खुद की पूर्णाहुति, ज्ञानी के सीढ़ी एक और सोपान अनेक न द्वैत, न अद्वैत, आत्मा द्वैताद्वैत द्वैत-अद्वैत, दोनों द्वंद्व ! ११६ निमित्त से वह... अज्ञान ने आवृत किया ब्रह्म १५७ ११६ प्रतीति परमात्मा की प्राप्त करवाए पूर्णत्व १५८ १२० प्रत्येक आत्मा स्वतंत्र है, सिद्धक्षेत्र में भी १५९ १२१ बात तो वैज्ञानिक होनी चाहिए न ? १६१ १२२ नहीं हो सकते आत्मा के विलीनीकरण १६२ सत् प्राप्त करवाने के लिए कैसी कारुण्यता१२३ तेज मिल जाए तेज में, तो खुद का एकांतिक मान्यता से रुका, आतमज्ञान १२४ क्या रहा? ब्रह्म सत्य है और जगत् भी सत्य है, लेकिन... वास्तविकता समझनी तो पड़ेगी न ! 'सत्' प्राप्ति के बाद, जो 'सत्य' बचा १३९ १४१ १४२ १४३ १६३ १६५ सनातन सुख में डूबे रहना, वही मोक्ष १६४ १२५ सिद्धगति में सुख का अनुभव १२७ स्वभाव से एक समान, लेकिन अस्तित्व से भिन्न १२९ वस्तु-स्वरूप के विभाजन नहीं होते १३१ क्या रुपया कभी पैसा बना है ? ३६ १६६ १६८ १७०
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy