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________________ आप्तवाणी-८ २७७ प्याला खड़का कि वहीं पर 'उसमें ' ' रोंग बिलीफ़' घुस जाती है कि कोई है। अब जब तक यह ' रोंग बिलीफ़' नहीं निकलती तब तक 'उसकी ' दशा ऐसी की ऐसी ही रहती है, घबराहट होती है। भूत सोहम् से शुद्धात्मा नहीं साधा जा सकता प्रश्नकर्ता : ‘मैं शुद्धात्मा हूँ' ऐसा बोलना और 'सोहम्' बोलना, इसमें क्या फ़र्क़ है? दादाश्री : सोहम् बोलने का अर्थ ही नहीं है।‘शुद्धात्मा' तो ‘आप’ हो ही। सोहम् का अर्थ क्या हुआ? कि 'वह मैं हूँ', उसमें अपना क्या कल्याण हुआ? अतः ‘मैं शुद्धात्मा हूँ' इसीमें खुद का कल्याण है, इसमें ‘यह शुद्धात्मा, वह मैं हूँ।' जब कि सोहम् का मतलब तो 'वह मैं हूँ ।' उसका कोई अर्थ नहीं है ! सोहम् तो शुद्धात्मा प्राप्त करने का साधन है। जिसे साध्य मिल जाए, उसके साधन छूट जाते हैं । शुद्ध हो जाने पर शुद्धात्मा बोल सकते हैं प्रश्नकर्ता : ‘मैं शुद्धात्मा हूँ' बोलने से शुद्धात्मा हुआ जा सकता है ? दादाश्री : ऐसे नहीं हो सकते। ऐसा तो कितने ही लोग बोलते हैं न कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ' लेकिन कुछ होता नहीं है I प्रश्नकर्ता : आपके पास से ज्ञान उपलब्ध नहीं हुआ हो, वह यदि किताब में से पढ़कर अथवा तो किसीके कहने से 'मैं शुद्धात्मा हूँ' बोले तो फ़ायदा होगा? दादाश्री : उससे कुछ नहीं होगा । ऐसे लाख जन्मों तक 'शुद्धात्मा' बोलेगा, तब भी कुछ होगा नहीं । जैसे कि आपका एक दोस्त हो, वह आपसे बात करते-करते सो जाए, लेकिन आप ऐसा समझो कि वह जग रहा है, तो आप उसे रुपये देने के लिए पूछते हो, फिर से पूछो उससे पहले ही वह कहता है कि, 'मैं तुझे पाँच हज़ार रुपये दूँगा ।' तो हम क्या वह सच मान लें? हमें पता
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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