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________________ २७८ आप्तवाणी-८ तो लगाना पड़ेगा न कि वह नींद में है या जागते हुए बोल रहा है? अगर नींद में बोल रहा होगा तो हम सारी रात बैठे रहेंगे तो भी कुछ देगा नहीं और अगर जागृत अवस्था में बोल रहा होगा तो हमें देगा। उसी तरह से यह नींद में बोलता है कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ', इसलिए कुछ होगा नहीं। 'मैं शुद्धात्मा हूँ' वह भान 'ज्ञानीपुरुष' का दिया हुआ होना चाहिए यानी कि जग रहा हो और बोले तो काम का। इसी तरह मैं आपको जाग्रत करके 'शुद्धात्मा हूँ' बुलवाता हूँ, यों ही नहीं बुलवाता! और एक घंटे में तो पूरा मोक्ष दे देता हूँ। मोक्ष यानी कभी भी चिंता नहीं हो, ऐसा मोक्ष देता हूँ। प्रकट से प्रकटे, या पुस्तक के दीये से? प्रश्नकर्ता : ज्ञान लिए बगैर पुस्तक में पढ़कर 'मैं शुद्धात्मा हूँ' बोले, तो भी उसका फल मिलेगा न? दादाश्री : कुछ भी फल नहीं मिलेगा, 'ज्ञान' लिए बगैर कोई 'शुद्धात्मा हूँ' बोले तो काम नहीं आएगा। उसे 'शुद्धात्मा' तो याद ही नहीं आएँगे न! और किताब में तो ऐसा लिखा हुआ है कि 'आत्मा शुद्ध है और तू शुद्धात्मा है। यह सब तू नहीं है और संसार में शुद्धात्मा के रूप में हम कुछ कर सकें, ऐसे हैं ही नहीं। वह द्रव्य अपना काम करता है, यह द्रव्य अपना काम करता है।' यह सब कहना चाहते हैं। लेकिन लोगों को शुद्धात्मा रहेगा ही किस तरह? यह तो अहंकार और क्रोध-मान-माया-लोभ सबकुछ साथ में है, तो उसे शुद्धात्मा किस तरह से रहेगा? यों पूरे दिन रटकर 'मैं शुद्धात्मा हूँ' बोलता है, लेकिन उसे शुद्धात्मा का लक्ष्य बैठता नहीं है न! 'ज्ञानीपुरुष' पाप जला दें, तब शुद्धात्मा का लक्ष्य बैठता है और वह लक्ष्य हर समय रहता है, नहीं तो लक्ष्य में रहे ही नहीं न! यानी कि पहले पाप धुल जाने चाहिए। प्रश्नकर्ता : आपकी पाँच आज्ञाएँ लिखी हुई हों, तो आज से सौदो सौ वर्ष बाद भी कोई पाँच आज्ञा पढ़कर बोले, उन पर विचार करे, तो फिर उसे शुद्धात्मा का पद मिलेगा या नहीं?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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