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________________ २७६ आप्तवाणी-८ कहेंगे, 'पिताजी फीस लाइए।' अरे भाई, फीस तो घर में है, लेकिन सौ का नोट भुनाने जाना पड़ेगा या नहीं जाना पड़ेगा? शादी नहीं की हो तो नौकरी, धंधा होता है। यानी यह सारा जंजाल हैं और जब तक यह है तब तक निरंतर 'आत्मा' में नहीं रहा जा सकता। लेकिन 'अपने' भाव जब इस जंजाल में से कम होते जाएँगे और सुख 'आत्मा' में ही है, ऐसा समझ में आ जाएगा, तब यह जंजाल कम होता जाएगा, उसके बाद फिर 'आत्मा' में रहा जा सकेगा। शुद्धात्मा शब्द की समझ प्रश्नकर्ता : ऐसा कहते हैं कि, आत्मा सच्चिदानंद घन है। यह कल्पना है या सच है? दादाश्री : क्यों? सच है। आत्मा सच्चिदानंद घन है, यह सच्ची बात है। इसमें कल्पना नहीं है। प्रश्नकर्ता : लोग इसे कल्पना भी कहते हैं, वह क्या है? दादाश्री : कल्पना करनेवाले को 'सच्चिदानंद क्या है', इसका भान नहीं है। अगर भान हो जाए न तो खुद को हमेशा के लिए शाश्वत आनंद हो जाएगा। सनातन सुख प्राप्त हो जाए, तब सच्चिदानंद स्वरूप हुआ जाता है। प्रश्नकर्ता : आत्मा सच्चिदानंद घन है, तो 'शुद्धात्मा' क्यों कहा है? दादाश्री : आत्मा सच्चिदानंद स्वरूप ही है। लेकिन इन लोगों को सच्चिदानंद शब्द क्यों नहीं दिया? क्योंकि 'सच्चिदानंद', वह गुणवाचक शब्द होने से इन लोगों को समझ में नहीं आएगा, इन्हें शुद्धात्मा की ज़रूरत है, इसलिए इन लोगों को शुद्धात्मा शब्द दिया है। शुद्धात्मा की ज़रूरत क्यों है? ये लोग कहते हैं कि 'मैं पापी हूँ।' तब कहे, “यदि 'तू' 'विज्ञान' को जान लेगा तो तुझे पाप छू नहीं सकेगा। 'तू' 'शुद्धात्मा' ही है, लेकिन 'तेरी' 'बिलीफ़ रोंग' है।" जिस प्रकार किसी मनुष्य ने दिन में भूत की बात सुनी हो, और रात को रूम में अकेला सो जाए, तो रात को अगर अंदर
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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