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________________ आप्तवाणी-८ २७५ प्रश्नकर्ता : ज़रूरत नहीं है। दादाश्री : तो इस देह की ज़रूरत है या नहीं? प्रश्नकर्ता : भगवान के अलावा मुझे और किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है। दादाश्री : यह ठीक है, आपका तो शूरवीर जैसा काम है। लेकिन उसके लिए आपको भगवान क्या है', वह जानना चाहिए। 'जगत् क्या है, किसने बनाया, भगवान क्या हैं, हम कौन हैं, यह पूरा जगत् किस तरह से उत्पन्न हुआ, अब भगवान का साक्षात्कार हमें किस तरह से प्राप्त होगा', वह सब जानना पड़ेगा। प्रश्नकर्ता : इसका रास्ता क्या है? दादाश्री : रास्ता तो यहीं पर है, और वर्ल्ड में किसी भी जगह पर इसका रास्ता है ही नहीं। यहीं पर वह सारा रास्ता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन अनुभव के बगैर बेकार है न? दादाश्री : हाँ, अनुभव तो होना ही चाहिए। प्रश्नकर्ता : वह कब होगा? दादाश्री : भगवान के अलावा, आत्मा के अलावा जब किसी भी चीज़ की ज़रूरत नहीं रहेगी, तब अनुभव होगा। फिर उसमें स्त्री, पैसा किसी भी चीज़ की ज़रूरत नहीं रहती। और यहाँ पर तो आपको वैसा अनुभव हो जाएगा। कब? इस जन्म में ही, वह भी दो-तीन महीनों में नहीं, एक घंटे में ही हो जाएगा। प्रश्नकर्ता : फिर निरंतर आत्मा में तन्मयाकार किस तरह से रहेंगे? दादाश्री : यहाँ पर ज्ञान ले, और फिर 'हमारी' 'आज्ञा' में रहे तो निरंतर 'आत्मा' में रह सकेगा। लेकिन यह जंजाल है न, वह 'उसे' निरंतर 'आत्मा' में नहीं रहने देता। आपको' भी जंजाल तो है ही न, फिर? बच्चे
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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