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________________ आप्तवाणी-८ २५५ प्रश्नकर्ता : आत्मानुभव का मतलब ही सम्यक्दर्शन है न? दादाश्री : कषाय उपशम हो जाते हैं। बिल्कुल कषाय न रहें, और अड़तालीस मिनट तक आनंद दिखे, उसे सम्यक्दर्शन कहते हैं। कषाय उपशम हो जाते हैं, वह भी अड़तालीस ही मिनट, उनपचास मिनट नहीं। प्रश्नकर्ता : कषायों का उपशम होना, वह किस पर आधारित है? दादाश्री : आस-पास के संयोगों पर आधारित है। और इसका एक ही कारण होगा, ऐसा नहीं है। किसी भी कारण से, कुछ देखने से भी उसके कषाय उपशम हो सकते हैं। देहाध्यास छूटने पर आत्मानुभव प्रश्नकर्ता : आत्मदर्शन हो गया, ऐसा किस तरह पता चलेगा? दादाश्री : यह देहाध्यास है, ऐसा पता चलता है या नहीं पता चलता आपको? 'मैं चंदूभाई हूँ' ऐसा पता नहीं चला? 'इस स्त्री का पति हूँ' ऐसा पता नहीं चलता? अपने बेटे को देखो तो आपको तुरन्त ही ज्ञान हाज़िर हो जाता है कि 'मैं इसका बाप हूँ' या भूल जाते हो? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : देहाध्यास है, इसलिए यह सब हाज़िर हो जाता है। तो आत्मदर्शन हो जाए तब अन्य सब हाज़िर हो जाता है। अज्ञान में ऐसा सब हाज़िर रहता है और ज्ञान में वैसा सब हाज़िर हो जाता है। जिसका देहाध्यास छूट चुका हो, वहाँ पर आत्मा की अनुभूति होती है। हिन्दुस्तान में दीया लेकर ढूँढोगे तो भी जिसका देहाध्यास छूट चुका हो ऐसा मनुष्य नहीं मिलेगा। दीया लेकर ढूँढते रहोगे, गुफाओं में ढूँढोगे तो भी नहीं मिलेगा। गुफाओं में ऐसा तो हो ही नहीं सकता। गुफाओं में तो तप करते रहते हैं । गुफाओं में कभी भी ज्ञान नहीं होता।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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