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________________ २५६ आप्तवाणी-८ अर्थात् जब उसका देहाध्यास जा चुका हो, तभी हमें समझना चाहिए कि यह अनुभूति है, नहीं तो वह अनुभूति नहीं कहलाएगी। अब जिसका देहाध्यास चला गया हो, उसका और क्या-क्या जा चुका होता है? अहंकार और ममता दोनों जा चुके होते हैं। वह भी कुछ अंशों तक जाते हैं, सर्वांश नहीं जाते। शायद कभी जिसका अहंकार कम हो गया हो ऐसा व्यक्ति दिख जाएगा, लेकिन ममता किसीकी भी कम नहीं हुई है। और जब भोजन आया हो न, वहाँ पर अगर आप देखो तो वे देहाध्यासवाले लोग, वे महाराज हों या कोई भी हो, वह खुद की थाली का ही रक्षण करता है। दूसरों को दे दें' ऐसा कुछ भी नहीं, इसे 'देहाध्यास छूट गया है' ऐसा कैसे कहेंगे? अब इस देहाध्यास के पार किस तरह से निकल पाएगा वह? ओहोहो! आत्मज्ञान की अद्भुतता कैसी प्रश्नकर्ता : जब आत्मज्ञान होता है, तब शरीर में क्या परिवर्तन हो जाता है जिससे हमें समझ में आए कि आत्मज्ञान हुआ है? दादाश्री : आत्मज्ञान होने के बाद में कोई हमें गालियाँ दे न, फिर भी वे अंदर नहीं पहुँचती और मन में ऐसा लगता है कि यह निमित्त है बेचारा, इसका क्या दोष है? गाली देनेवाला भी निमित्त लगता है। जेब काटनेवाला भी निमित्त लगता है। उल्टा बोले, वह अज्ञान कहलाता है और सीधा बोले, वह ज्ञान कहलाता है। आत्मज्ञानी सबकुछ सीधा बोलते हैं। जब कि अज्ञानी तो सबकुछ उल्टा ही बोलते हैं, जेब काटनेवाले को ही पकड़ते हैं और निमित्त को काटने दौड़ते हैं। प्रश्नकर्ता : अर्थात् 'निराभिमानी बनना और किसीको दोष नहीं देना', तो इसे आत्मज्ञान है, ऐसा समझ सकते हैं क्या? दादाश्री : हाँ, बस निराभिमानी हो जाए और किसीको दोष नहीं
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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