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________________ २५४ आप्तवाणी-८ प्रश्नकर्ता : तो अन्य सबको जो अनुभूति होती है, वह सच्ची है या गलत? दादाश्री : अनुभूति? वह अनुभूति पीतल को सोना माने, ऐसी है। और उससे दिन बदलेंगे नहीं। लाख जन्म निकल जाएँ, फिर भी कुछ होगा नहीं? प्रश्नकर्ता : ऐसी अनुभूतिवाला कोई भी व्यक्ति अभी इस दुनिया में नहीं होगा? दादाश्री : ऐसा व्यक्ति होता ही नहीं है। जिसे अनुभूति हुई न, वह परमात्मा हो गया। वैसे परमात्मा हैं यहाँ पर? प्रश्नकर्ता : शायद अगर हों, तो भी हम पहचान नहीं सकेंगे न? दादाश्री : नहीं, तुरन्त ही पता चल जाएगा। अगर कभी दो अक्षर भी बोलें न तो पता चल जाएगा और पाँच शिष्यों को भी शांति दी होगी, उनमें मतभेद खत्म हो चुके होंगे। ऐसा है, आत्मा जल्दी जाना जा सके ऐसा नहीं है। चेतन को जानने के लिए मनुष्य के पास ऐसा कोई भी साधन नहीं है कि चेतन को जान सके वह। प्रश्नकर्ता : तो फिर उसे जानने के लिए प्रयत्न नहीं करने चाहिए? दादाश्री : जो प्रयत्न करते हैं, उनके खुद के हाथ में कोई भी सत्ता नहीं है। यह तो आपको ऐसा लगता है कि, यह सब मैं ही चलाता हूँ और मैं ही सोता हूँ, मैं ही उठता हूँ, मैंने प्रयत्न किया, ऐसा जो लगता है न, वह सब परसत्ता है। और उसे आप खुद की सत्ता मानते हो। _ 'चेतन' तो दिव्यचक्षु के बिना जाना ही नहीं जा सकता और दिव्यचक्षु 'ज्ञानीपुरुष' की कृपा से प्राप्त होते हैं। ऐसा है, अभी आपकी मिथ्यदृष्टि है। मिथ्यादर्शन अर्थात् जो नाशवंत चीज़ों को ही दिखाए, अविनाशी को नहीं दिखाए। इसलिए फिर आप चेतन देख ही नहीं सकते न! ऐसा समझ में आया आपको?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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