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________________ १७० आप्तवाणी क्या रुपया कभी पैसा बना है? आपको समझ में आया न कि भगवान तो सर्वांश स्वरूप से ही हैं ? आप ऐसा समझते थे कि भगवान अंश स्वरूप हैं? तब इन लोगों ने जो ऐसा बोले हैं कि भगवान अंश स्वरूप से हैं, वह कोई गप्प तो नहीं होगी न? क्या वह गप्प है? वह गप्प नहीं है, लेकिन लोग चुपड़ने की दवाई को पी जाएँ तो क्या होगा? अंशस्वरूप क्या है? कि 'आप' में 'भगवान' तो सर्वांश है, लेकिन जितना आवरण टूटा, 'आपको' उतना आंशिक ज्ञान प्राप्त हुआ है। लेकिन अंदर 'भगवान' सर्वांश हैं । और इस जन्म में ' आपमें ' सर्वांश ज्ञान प्रकट हो सकता है । वह हिन्दुस्तान का मनुष्य होना चाहिए। क्योंकि यहाँ का, हिन्दुस्तान का मनुष्य 'फुल डेवलप' हो चुका है। फॉरिनवालों के लिए यह ज्ञान काम का ही नहीं है। क्योंकि जो पुनर्जन्म को नहीं समझते हैं, उनके लिए यह ज्ञान काम का ही नहीं है । जिन्हें पुनर्जन्म समझ में आता है, उन्हें ही भगवान का सर्वांश स्वरूप समझ में आ सकता है । यानी ऐसा विज्ञान यदि सुनने में आए तो हिन्दुस्तान के लोगों की सभी शक्तियाँ जाग उठेंगी। वर्ना ये लोग मन में क्या मानते हैं कि, 'हम तो क्या कर सकते हैं? हम तो भगवान के अंश हैं।' लोगों ने ऐसा सिखाया कि 'हम तो भगवान के अंश हैं', ऐसा कहना ! अब लोगों को जो ज्ञान दिया जाता है, जो समझ दी जाती है, और जिस ज्ञान के आधार पर लोग जीते हैं, वह ज्ञान ही, आधार - ज्ञान ही यदि ऐसा हो कि 'मैं भगवान का अंश हूँ', तो फिर सर्वांश कब हो पाएगा? यानी इसका कुछ अंत नहीं आएगा। तू भगवान का अंश नहीं है। तुम संपूर्ण, सर्वांश भगवान ही हो । अंश कभी भी सर्वांश नहीं बन सकता । जो अंश है न, उसमें सर्वांश बनने की शक्ति ही नहीं है । अंश हमेशा अंश के रूप में ही रहता है । और सर्वांश कभी भी अंश स्वरूप नहीं बन सकता, सर्वांश तो हमेशा ही सर्वांश रहता है। तब फिर ऐसा सारा अज्ञान क्यों फैल गया ? भगवान का ऐसा स्वरूप क्यों मानते हैं? तब ‘ज्ञानीपुरुष' समझाते हैं कि भगवान तो सर्वांश हैं, लेकिन उनका अंश रूपी आवरण ही खुला है, उतना उसको लाभ मिलता है, बाकी खुद तो सर्वांश ही है ।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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