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________________ आप्तवाणी-८ १७१ आपको समझ में आया न? इस तरह से 'मैं अंश स्वरूप हूँ' कहेंगे तो कब पूरा होगा? मुझे ऐसे अंश स्वरूप कहनेवाले मिले तब मुझे ऐसा लगा कि 'यह किस प्रकार का है?' मैं छोटा था तब मुझे कहनेवाले मिले थे कि, 'हम सब तो अंश स्वरूप है।' तब मुझे ऐसे गुस्सा आया कि तू अंश स्वरूप होगा, मैं कैसा अंश स्वरूप? अंश स्वरूप, वह और एक पैसा कभी भी रुपया नहीं बन सकता और रुपया कभी भी पैसा नहीं बन सकता। पैसा लाख वर्षों तक पड़ा रहे तो रुपया बन जाएगा? यानी कि बात को समझने की ज़रूरत है। सही समझ, सर्वव्यापक की प्रश्नकर्ता : आत्मा सर्वांश है, उसी प्रकार आत्मा सर्वव्यापी भी है न? दादाश्री : नहीं। आत्मा सर्वव्यापी है, वह सापेक्ष बात है, वह हमेशा के लिए सर्वव्यापी नहीं है। जिसे सर्वव्यापी कहते हो, वह निरपेक्ष बात कर रहे हो या सापेक्ष बात कर रहे हो? प्रश्नकर्ता : निरपेक्ष की। दादाश्री : यह लाइट जो है, यह पूरे रूम में सब और व्याप्त है या नहीं है? प्रश्नकर्ता : हाँ, व्याप्त है। दादाश्री : इस लाइट पर ऐसे काग़ज़ या कुछ डाल दें तो? प्रश्नकर्ता : तो अँधेरा लगेगा। दादाश्री : तो फिर यहाँ पर उसकी लाइट नहीं दिखेगी न? प्रश्नकर्ता : नहीं दिखेगी। दादाश्री : तो उस समय वह सर्वव्यापी है? प्रश्नकर्ता : उस समय हमें भ्रांति होती है, लेकिन वह लाइट यों तो सर्वव्यापी है न?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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