SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-८ १६९ दादाश्री : यह ठीक है। लेकिन उसमें आत्मा का विभाजन नहीं होता। इस देह का विभाजन होता है। इस देह में अनंत जीव होते हैं, वे जीव अलग-अलग विभाजित हो जाते हैं। यह जो एक आलू है न, इसमें बहुत सारे जीव हैं। उसके जब टुकड़े करें न, तो इतना छोटा-सा टुकड़ा लगाएँगे तो भी वह उग जाएगा वापस। और दूसरी कितनी ही चीज़ों के टुकड़े करें और लगाएँ तो वे नहीं उगेंगे! जिसके टुकड़े करके लगाएँ और वह उग जाए, उसमें बहुत सारे जीव होते हैं। ये दूधवाले पौधे हैं न, कैक्टस और ऐसे, इन सबका इतना-सा टुकड़ा उगाएँ तो उग जाता है। उनमें अधिक जीव है, उससे वंशवृद्धि होती ही रहती है। प्रश्नकर्ता : तो फिर सूक्ष्मआत्मा और स्थूलआत्मा ऐसा जो कहा जाता है, तो उसमें क्या फ़र्क है? दादाश्री : ऐसा है, सूक्ष्मआत्मा, स्थूलआत्मा, आत्मा के इस तरह के विभाग होते ही नहीं। फिर भी ये लोग स्थूलआत्मा और सूक्ष्मआत्मा ऐसा सब कहते हैं। वह सारा ही विनाशी आत्मा है। और जो मूल दरअसल आत्मा है न, वह तो अविनाशी है। उसका सूक्ष्मभाग भी नहीं होता, स्थूलभाग भी नहीं होता। मैं जिसे आत्मा कहता हूँ उसमें, जिसका सूक्ष्म विभाग नहीं है, स्थूल विभाग नहीं है, अविभागी-अविभाज्य, ऐसा वह परमात्मा है। और आप, जिसका विभाजन हो सकता है, ऐसे स्थूल और सूक्ष्म आत्मा की बात कर रहे हो। यह स्थूल, सूक्ष्म, वह सब विनाशी है। वह 'मिकेनिकल आत्मा' है। और अगर हवा जाने दें, तभी वह 'मिकेनिकल आत्मा' चलेगा, नहीं तो अगर हवा बंद कर दें तो वह खत्म हो जाएगा। जब कि मूल आत्मा तो मरता ही नहीं। यानी आत्मा यदि परमात्मा का अंश होता न तो वह कभी भी सर्वांश नहीं हो पाता। और जो सर्वांश नहीं हो सके, वह आत्मा ही नहीं है। 'आप' सर्वांश हो लेकिन उसका आपको भान नहीं है। आपको अंश भान है। आप तो पूर्ण परमात्मा हो, लेकिन आपको कम भान है। अंश परमात्मा कभी भी होता ही नहीं है। परमात्मा के टुकड़े नहीं हो सकते।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy