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________________ १६८ आप्तवाणी-८ रहे हों तो आपको दिखता हैं न सब? उसी तरह ज्ञानियों को यह जगत् बहता हुआ ही दिखता रहता है। जब ज्ञानचक्षु खुल जाते हैं, तब दिखता रहता है कि जगत् प्रवाहमान है। और प्रवाहमान है इसलिए जहाँ पर आप हो वहाँ पर उस क्षेत्र में दूसरा नहीं है और जब आपके क्षेत्र में कोई दूसरा आता है, तब तक काल बदल जाता है। ऐसा आपको समझ में आता है? यानी कि (सभी के) देह, आकार, पुण्य और पाप सबकुछ अलग-अलग होते हैं। लेकिन आत्मस्वरूप से सभी एक ही होते हैं। वस्तु-स्वरूप के विभाजन नहीं होते प्रश्नकर्ता : तो सभी आत्मा एक ही आत्मा के अंश हैं, ऐसा कहा जा सकता है क्या? दादाश्री : नहीं, नहीं। सभी आत्मा एक ही आत्मा के अंश नहीं हो सकते। ऐसा है, हमेशा ही, कोई वस्तु होती है न, उसमें इन रूपी वस्तुओं के अंश होते हैं, लेकिन अरूपी के अंश नहीं होते। अरूपी एक ही वस्तु के रूप में होता है। उसके अंश हो जाएँ, टुकड़े हो जाएँ, विभाजन हो जाएँ तो फिर वह एक नहीं हो पाएगा। यानी कि खुद सर्वांश स्वरूप ही है। प्रश्नकर्ता : यानी मैं अपने आप में पूर्ण शुद्धात्मा हूँ? दादाश्री : आप पूर्ण ही हो, सर्वांश ही हो न! प्रश्नकर्ता : तो आत्मा का विभाजन नहीं हो सकता? दादाश्री : आत्मा खुद ही परमात्मा है और वह वस्तु के रूप में है। यानी उसका एक भी टुकड़ा अलग नहीं हो सकता, ऐसी पूर्ण वस्तु है। अगर विभाजन हो जाए तो टुकड़ा हो जाएगा तो वस्तु खत्म हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं है। आत्मा का विभाजन नहीं हो सकता। प्रश्नकर्ता : अमीबा नामक जीव है, उसकी वंशवृद्धि विभाजन पद्धति से होती है, एक से दो होते हैं, दो से चार होते हैं, इसलिए प्रश्न हुआ कि क्या आत्मा का विभाजन होता है?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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