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________________ १६२ आप्तवाणी-८ कहेंगे कि 'यह तो इस स्त्री का पति है।' और दुकान पर जाए तब कहते हैं, 'यह सेठ है।' कोर्ट में जाए तब कहते हैं, 'यह वकील है।' लेकिन वह खुद वही का वही है। यानी कि वही का वही जीवात्मा, वही का वही अंतरात्मा और वही का वही परमात्मा है। और वह जो काम कर रहा है उस काम के आधार पर उसके विशेषण हैं। नहीं हो सकते आत्मा के विलीनीकरण प्रश्नकर्ता : तो यह बात तो ठीक है कि आत्मा परमात्मा में विलीन होता ही है, लेकिन वह एक जन्म में नहीं तो दूसरे जन्म में, नहीं तो तीसरे जन्म में? दादाश्री : नहीं. नहीं। वहाँ पर विलीनीकरण है ही नहीं। आत्मा खद ही परमात्मा है। 'मैं चंदूभाई हूँ', अभी आपको ऐसा भान है। जब 'मैं आत्मा हूँ' ऐसा भान हो जाएगा, तब आपको परमात्मा का भान होगा। यह आत्मा ही परमात्मा है। आपका आत्मा, वह भी परमात्मा है, इनका आत्मा भी परमात्मा है। बाकी यह विलीनीकरण तो सारा इन सब लोगों ने लिखा है न, उससे लोगों के दिमाग़ खत्म कर दिए हैं। आत्मा के विलीनीकरण होते होंगे? यही का यही आत्मा, लेकिन उसका भान नहीं हुआ है। अभी आत्मा की अमानता में हो, आत्मा का भान नहीं है। अभी 'आपको' 'मैं चंदूभाई हूँ' ऐसा भान है, 'मैं देसाई हूँ' ऐसा भान है, लेकिन 'मैं आत्मा हूँ' ऐसा भान नहीं है न! ये सभी (महात्मा) आपके अंदर बैठे हुए आत्मा को देख रहे हैं, और वही परमात्मा है। यदि विलीनीकरण करना हो न, तब तो ये परमात्मा दिखेंगे ही नहीं न! इन्हें तो बकरी में भी परमात्मा दिखते हैं। बकरी में बैठे हए परे ही परमात्मा दिखते हैं, गधे में भी परमात्मा बैठे हुए हैं। यानी कि विलीनीकरण जैसी बात ही नहीं है। यह सबकुछ जो पढ़कर लाए हो न, वह एक तरफ़ रख देना। जिसे बिलोने पर थोड़ा-सा भी मक्खन नहीं निकले, उसका क्या करना है? फेंक देना, गिरा देना चाहिए। और ऊपर से यह तो की हुई मेहनत
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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