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________________ आप्तवाणी-८ १६१ साथ अभेद हो गए तो उसमें अपना क्या रहा? और सभी भगवान ही हैं न! ये रामचंद्रजी मोक्ष में गए तो मोक्ष का सुख अभी वे खुद भोग रहे हैं। और हम लोग यहाँ पर हैं, तो हमें यहाँ की परेशानियाँ रहती हैं, वे भोगनी पड़ती हैं। ___और संसार में भी, ब्रह्मांड में भी आत्मा एक नहीं है, अनंत जीव हैं, लेकिन हैं सभी एक स्वभाव के। उनके जो गुणधर्म हैं, उनमें कभी भी फ़र्क नहीं आता। बात तो वैज्ञानिक होनी चाहिए न? प्रश्नकर्ता : लेकिन मेरा ऐसा मानना है कि परमात्मा तत्व के अलावा अन्य कुछ भी नहीं है और हम जिसे आत्मा कहते हैं वह अन्य कुछ भी नहीं है, लेकिन वह परमात्मा का आविर्भाव है। दादाश्री : ऐसा मानना, लेकिन साथ-साथ दुःख का वेदन है या नहीं? यदि आत्मा, वह परमात्मा का आविर्भाव है, तब फिर क्या आपको दुःख का अनुभव होता है? प्रश्नकर्ता : हाँ, दुःख का अनुभव होता है। दादाश्री : दुःख का अनुभव होता है, तो फिर एक से सौ तक के सभी अंक मानने पड़ेंगे। और यदि दुःख का अनुभव नहीं होता तो फिर नहीं मानोगे तो चलेगा। नहीं तो एक से सौ तक के सभी अंक मानने पड़ेंगे। पैंतालीस के बाद छियालीस आना चाहिए और छियालीस के बाद सैंतालीस आना चाहिए, सबकुछ पद्धतिपूर्वक होना चाहिए। इस तरह गप्प ठोकना नहीं चलेगा। बाकी सब में चलेगा, लेकिन विज्ञान में थोडी-सी भी गप्प नहीं चलेगी। प्रश्नकर्ता : तो इसका अर्थ यह हुआ कि आत्मा, परमात्मा से विभक्त हो चुका, एक अलग तत्व है? दादाश्री : विभक्त नहीं, आत्मा ही परमात्मा है और जीवात्मा ही परमात्मा है। सिर्फ समझ का फ़र्क है। वह जब घर पर होता है तब लोग
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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