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________________ आप्तवाणी-८ १५९ प्रत्येक आत्मा स्वतंत्र है, सिद्धक्षेत्र में भी प्रश्नकर्ता : सभी आत्मा अलग-अलग हैं या सभी एक परमात्मा के ही रूप हैं? दादाश्री : व्यवहार से सभी अलग हैं। नाम रूप देखने जाएँ तो व्यवहार से सब अलग हैं, 'रियली' एक ही है। 'रिलेटिवली' अलग-अलग हैं और 'रियली' एक हैं तो आपको क्या जानना है? प्रश्नकर्ता : यह ब्रह्म है, इन्हें एक में से अनेक होने की इच्छा क्यों हुई होगी? 'एकोहम् बहुस्याम्' ऐसी इच्छा क्यों हुई उन्हें? दादाश्री : यह तो ऐसा है न, कि वह खुद एक ही है। अनेक कभी हुआ ही नहीं, एक ही है। लेकिन भ्रांति से अनेक हो गया है, ऐसा दिखता है। यह एक ही स्वभाव का है। इस सोने की चाहे कितनी भी सिल्लियाँ हों और सबको इकट्ठा करें, तो सारा एक ही है न? और इसमें पीतल मिल जाए तो नुकसान है। सभी भगवान ही हैं, भगवान स्वरूप ही हैं। लेकिन यह अलग दिखता है, उसका कारण भ्रांति है। प्रश्नकर्ता : यानी सभी में जो चेतन तत्व उपस्थित है, वह एक ही दादाश्री : हाँ, एक ही है। लेकिन एक ही यानी कि स्वभाव से एक है। प्रश्नकर्ता : फिर जब देहोत्सर्ग होता है, तब वह चेतन जो कि चला जाता है, उसका फिर एकीकरण नहीं हो जाएगा? उसका अस्तित्व अलग किस तरह से रह सकेगा? दादाश्री : इस जगत् में सबकुछ अलग है। यहाँ पर भिन्नता लगती है न, वैसी वहाँ पर भी भिन्नता है। वहाँ पर अलग यानी कि स्वभाव से सब एक ही लगता है, लेकिन अस्तित्व से तो अलग है, खुद का सुख अनुभव करने के लिए वह खुद अलग है।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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