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________________ १५८ आप्तवाणी-८ बिलीफ़' हमें फ्रेक्चर करनी हैं और 'राइट बिलीफ़' बैठानी हैं, यानी फिर आप अंतरात्मा हो जाते हो, फिर पूर्णाहुति अपने आप होती ही रहेगी। और यह कोई अँधेर राज नहीं है। मैं एक घंटे में मोक्ष देता हूँ, तो यह अँधेर राज से नहीं होता। ऐसा पहले कभी हुआ ही नहीं है, मैं तो निमित्त हूँ। यह तो अपवाद मार्ग है। जहाँ नियम होते हैं न, वहाँ पर अपवाद हुए बगैर रहता ही नहीं। ऐसा ही यह अपवाद मार्ग है और इसका निमित्त मैं बन गया हूँ। प्रतीति परमात्मा की, प्राप्त करवाए पूर्णत्व जब मूढ़ दशा में आता है, तब मूढ़ात्मा कहलाता है। मैं चंदूलाल हूँ, मैं कलेक्टर हूँ', इसे क्या कहेंगे? वह मूढ़ात्मा की मूढ़ दशा है, जो नाशवंत चीज़ों में सुख मानता है। खुद अविनाशी है और नाशवंत विनाशी है, इन दोनों का गुणन कभी हो ही नहीं सकता। फिर भी भ्रांति से भौतिक में सुख मानता है, इसीलिए मूढ़ात्मा कहा है। ___अब 'ज्ञानीपुरुष' जब उसे परमात्मा की प्रतीति करवाते हैं कि 'यह सारा जगत् तेरा नहीं है, तू खुद ही परमात्मा है', तब 'मैं-पन' परमात्मा के साथ अभेद हो जाता है। शुरूआत में संपूर्ण अभेद नहीं हो पाता, प्रतीतिभाव से अभेद होता है। सबसे पहले प्रतीतिभाव से है, फिर ज्ञानभाव से अभेद होता है। अर्थात् पहले प्रतीति बैठनी चाहिए कि 'मैं परमात्मा हूँ।' अभी तो 'मैं चंदूलाल हूँ', यह रोंग बिलीफ़ बैठी हुई है। 'मैं कलेक्टर हूँ', यह रोंग बिलीफ़ है। ये सभी रोंग बिलीफ़ 'ज्ञानीपुरुष' फ्रेक्चर कर देते हैं और राइट बिलीफ़ बैठा देते हैं, वह 'खुद' इसे एक्सेप्ट करता है, खुद के मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार सभी इसे एक्सेप्ट करते हैं, 'खुद' संशयरहित हो जाता है, नि:शंक हो जाता है, तब काम होता है। ये तो अनंत जन्मों के संशय भरे हुए हैं। उन सभीको 'ज्ञानीपुरुष' फ्रेक्चर कर देते हैं, तब 'खुद' संशयरहित हो जाता है, और तब परमात्मा की प्रतीति बैठती है। वह जो श्रद्धा बैठती है, वह राइट बिलीफ़ है।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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