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________________ आप्तवाणी-८ १३१ अब खरा सत् क्या होना चाहिए? ये चंदभाई ‘रिलेटिव करेक्ट' हैं। और 'रियल करेक्ट' कौन है, उसका पता लगाना बाकी है। वह मैं आपको बता देता हूँ, वही खरा सत् है, जो शाश्वत सत् है। आपको सत् संजोग करना है न या नहीं करना? या फिर कभी, या कभी बाद में हो तो हर्ज नहीं। अभी तो बाल काले हैं, जल्दबाजी नहीं करनी हो तो मत करना! सफेद बालवालों को चिंता होती है! आपको भी काम निकाल लेना है? ऐसा? अज्ञान ने आवृत किया ब्रह्म ये सभी शास्त्र ब्रह्म को जानने के लिए लिखे गए हैं। ब्रह्म प्राप्ति करने के लिए ही ये सब शास्त्र लिखे गए हैं। फिर भी ब्रह्म प्राप्ति नहीं हुई, इसलिए तो अनंत जन्मों से भटक रहा है! जब तक खुद के स्वरूप का अज्ञान जाएगा नहीं, तब तक हल नहीं आएगा। बाकी सभी तो कल्पनाएँ हैं। लोगों ने जो कल्पनाएँ की हैं न, उन कल्पनाओं का तो अंत ही नहीं आए, ऐसा है। प्रश्नकर्ता : तो ब्रह्म प्राप्ति में बाधक कौन है? दादाश्री : अज्ञान बाधक है। मल, विक्षेप और अज्ञान, ये तीन चीजें बाधक हैं। इसलिए लोग क्या करते हैं कि मल, विक्षेप को निकालते रहते हैं, लेकिन अज्ञान निकालने के प्रयत्न किसी भी जगह पर नहीं हो पाते। अज्ञान निकालने के प्रयत्न नहीं हो पाते, उसका क्या कारण है? क्योंकि ऐसे 'ज्ञानीपुरुष' होते ही नहीं। किसी ही समय में हज़ारों वर्षों में 'ज्ञानीपुरुष' अवतरित होते हैं! बाकी तो 'ज्ञानीपुरुष' होते ही नहीं। जब 'ज्ञानीपुरुष' होते हैं, तभी अज्ञान जाता है और अज्ञान गया तो सबकुछ गया। यानी सबसे बड़ा बाधक कारण कोई है तो अज्ञान है। वह अज्ञान गया कि 'मैं कौन हूँ', उसका उसे खुद को भान हो जाता है। वह भान होने के बाद फिर उसका लक्ष्य नहीं जाता। प्रश्नकर्ता : यानी ब्रह्म प्राप्ति में अहंकार ही आवरण है, ऐसा कहा जा सकता है न?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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